शनिवार, 26 मार्च 2022

कह रहा है हेर लम्हा अगाही का........................

 



मेरी साँसें चीन रही हैं

मेरी नब्ज़ तुम रही है

का दिन से मिज़ाज अपना

मेरी धड़कन बदल रही है

आख़िर साबित यही हुआ है

बदलना ही नशोनुमा है

अब आयेज खुदा ही जाने

बदले मे क्या क्या बदले

धड़कानों का गर सिला है

तेरी आटा मुझ को चुन ले

दुनिया चकई है गर्दिशों की

ये रोज़ कोई जिस्म कुचले

वो आदम भी क्या थे आदम

जो कभी राह अपनी ना बदले

ये तमाशबीन कूब से

क़यामत के मुंतज़ार हैं

ये जसरत है खाहिशों की

हाथ जिनके जो आया फिसले

वक़्त करता रहा है आगाह

मई बिसात हूँ तू खिलाड़ी

बीच सकता हूँ मगर मई

उसके हाथ मेरी हेर घड़ी है

होल हिरसान ,हैरान, परेशन

तू महज़  हिकमत की एक कड़ी है

कोई डमसाज़ साथ ना चल सकेगा

तेरी नदमातों से ना तूल सकेगा

कह रहा है हेर लम्हा अगाही का

मौत की निउ पेर ही ज़िंदगी खड़ी है

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