शनिवार, 19 मार्च 2022

ये दुनिया महज़ तमाशा...............




सब से दिल लगाया

एक दिल से नही लगाया

ये दुनिया महज़ तमाशा

ये दिल क्यों ना जान पाया

हेर ज़ुबान मुख़्टालीफ़ है

जिसे दिल समझ पाए

कोई वो बात कर ना पाया

साथ हालात हेर क़दम हैं

कोई रिश्ता साथ हो ना पाया

कहने को हेर शाकस मोहब्बत है

पेर कोई मोहब्बत कर ना पाया

ये दिल,.दिल क्यों पढ़ रहा है

इस सैर-ए-बातिनी से क्या हाथ आया

सदिओं से था जो जमुद तारी

वो एक दिल ना तोड़ पाया

मक़ताल से राह-ओ-रसम है पुरानी

बेकार ही वो ज़ालिम क़ातिल कहलाया

चला ले, तू भी तीर-ओ-नश्तर

इस मुंज़ामीड लहू को कोई ना छेड़ पाया

रूह तो आज़ल से सफ़र पेर है अपनी

 इस जिस्म का ठिकाना रिश्ते कहलाया

आज लगता है हेर आँख अजनबी है

एक अजनबी से जुब से दिल लगाया

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें