बुधवार, 14 जून 2023

अब सोचो तो लगता है.....

 


हाँ  बाद मुद्दत के राज़ ये खुला था

किर्छियों मे रिस्ता अपना ही दिल मिला था

हम साया ज़िंदगी का जो क़ुला लग रहा था 

वही अजनबी इस क़ुला का दर्र बन गया था

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अब सोचो तो लगता है

चाहतें बहुत तीन

फिर भी चाहा तुम्हें

लाख नासमझ रहे हम

फिर भी समझा तुम्हें

सवाल खुद ना-समझ है

काश जान पाता हुमें

ज़िंदगी शिकवा किनान है

काश किसी दिन आज़माते हुमें

ये हक़ तुम्हें  हमने  दिया है 

वरना कैसे बुझ पाते हुमें 

ज़िंदगी को उमर भर सुनते रहे

काश बात दिल की सुनाते तुम्हें

मंगलवार, 13 जून 2023

वो कहाँ नही है ................

 





ये दिया जो टिमटिमा रहा है

दे गया है सुरघ रोशनी का

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सदियों की मुसाफतों ने

उमरभार की कोफ़टोन ने

तका दिया है हम को

अजब है घूम-ए-दुनिया

ताक़ब मे है मुसलसल

हेर दिन नया जहद है

खुद से नया अहद है

दुनिया-ओ-माफीहा से हूट कर

मिला करेंगे खुद से

अपनी खामोशी भी अब ख़ाता है

तन्हाइई का सकूट भी नराव है

आख़िर इस दुनिया को क्या हुआ है

हेर करवट लगे सज़ा है

आख़िर तुम गये ही क्यों थे

मेरे और ज़माने की डर्मयानी

वहेड दीवार तुम्ही थे

अब रोज़ आते हैं पठार

अब उनके हाथ ये मास्घाला है

अकेला शिकार आसान होगआया है

चलो चलाओ सारे तीर-ओ-नश्तर

अब हम मे खुदा बोल उठेगा

मज़लूम दिल की आ से भी पहले

रब बेकसों का दिल थाम लेगा

डरो नादनो वक़्त के गाज़ाब से 

ये कभी एक़्सा नही रहेगा

इस दिल ने मार कर भी दी ज़िंदगी है

चोट खा कर भी तमन्ना यही की है

काश सिटमगारों को कभी सकूँ आए

ये ज़ख़्म ही उनका मदवा बन जाए

खुदा ने आज़माशों से ही लिखे मोक़दार

इनके बाघैर आबूर हो ना सके समंदर

आए दिल जुब सब तुझे पत्ता है

फिर क्यों ये आ-ओ-बका है

तुझे याद हो के याद ना हो

ये राअस्ते तूने ही चुने थे

फिर शिकवा कैसा नाश्तरों से

जिसे तूने समझा सितम है

शाएेद वही कालीद खिल्ड की हो

क्या ये सकूँ की डॉवा नही है

के खुदा दिल मे ही कहीं है

वो सब सुन रहा है जानता है

टूटे हुए दिलों को वही ताँता है

सुबह शाम उसी से गुफ्तगू है

वो कहाँ नही है वो कू बा कू है

रविवार, 11 जून 2023

थी अभी तू नही है अभी.................

 



ज़िंदगी तू जुब ना रही

होगई  तेरी याद ज़िंदगी

है  माम्मा  उलफत तेरी

थी अभी  तू नही है अभी

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खामोशियों को देखा  है फिर से झिंजोड़ कर

वाँ भी कुछ नही था खामोशियों को छोड़ कर

शामिल था ज़िंदगी मे   जो   शब-ओ-रोज़ की तरहा

वो चल दिया अचानक मुझ को यों तन्हा छोड़ कर

जो दिल अपनी ही अठखेलियों मे तौमर मगन रहा

अंजन था मिलती है खुशी चादर घूम की ओढ़ कर

जमाने भर के घूमों  का  बेड़ा जिसने घर्क़ कर दिया

चल दिया तूफान आशना उसे थपेड़ों मे छोड़ कर

थी किसे खबर शाम-ए-घूम   इतनी होगी तवील-टर

बूँद बूँद  ज़िंदगी का लेजाएगी यादों से निचोड़ कर

रंग चाहतों के  हसरतों   से मिल कर   बहेल गये

ख्वाब जीतने थे ज़िंदगी  के चल दिए मूह मोड कर

आख़िर ये दिल अपनी ज़द से  आगे निकल ही ना सका कभी

एक तुम ही थे मेरी हस्ती को रखते थे जोड़ कर

आ, ज़िंडों के दरम्यान  खुद को ज़िंदा नही लगी

तुम्हारी याद ने थमा है बारहा मुझ को दौड़ कर