उस चाँद को लग गया गिरहण
रोशणिओन को जिस पे एतबार था
उन तारों का नसीब खो गया
चाँद को जिन से प्यार था
तमाम शब था जो महू-ए-रक़स
वो बस एक पल का खुमार था
कहीं तो ख़तम होता ये सिलसिला
ये वही सदिओं पुराना इंतिज़ार था
देख चाक चिलमानों की ओट से
वही वहशाटों का तलबगार था
दिल ने समझा जिसे दाना हकीम
वो बेचारा खुद भी बीमार था
कोई राह ढूनडता है,मंज़िल कोई
कारवाँ-ए-सफ़र का यही क़रार था
रहबरी चाँद को भी मक़सूद थी
उसकी यही थी दुआ,यही इसरार था
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