बुधवार, 10 मई 2023

गूँज दिल की जुब तक ......................

 



कारखाना-ए-क़ुद्रट मे जो छुपा है

तेरे नादान बंदे को क्या पत्ता है

जो महज़ खाना पूरी मे लगा है

इसके घौर-ओ-फिकीर के दरम्यान फासला है

इन फसीलोन मे बंदा उलझ के रह गया है

कभी डॉघड़ी इस पूर्फरेब जहाँ से निकल पाता

अपनी ज़ात का जमाल उसको नज़र आता

ये कमाल उसकी अपनी ज़ात का नही है

खलिख की हिकमतों को समझ जाता

के ये जुंग जो " मई " की लगी हुई है

फरेब-ए-नज़र के साइवा कुछ नही है

तुझ मे " तेरा " कुछ भी नही है

दोनो आलामों मे तू तन्हा नही है

तेरे पल पल की खबर ताशीर होरही है

बनाने वाले ने तुझे आईना ही बनाया

तुझे ही आईनों का मक़सद समझ ना आया

ज़िंदा होना ज़िंदगी की नही है दलील कोई

गूँज दिल की जुब तक नाला-ए-हक़ नही है

खिलाफ फ़ितरातों के सदा लदी है जुंग तू ने

कभी अपनी दोरंगी नियतों के रंग आज़माता

तुझे गुल भी चाहिए गुलचीन की रोघहबतें भी

मुमकिन ही नही , मुहाफ़िज़ खारों से निकल जाता

रफ़्ता रफ़्ता रफ़्तार ज़िंदगी की समझा ही लेगी

आया ज़रूर है , खाली हाथ कोई नही जाता

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