शनिवार, 30 जनवरी 2010

कहीं किसी शहर मे



कहीं किसी शहर मे

फिर किसी के घर मे

कोइ हसरतों का मारा

आज मार गया होगा

दिलों के भेद सारे

जान लेते हैं सितारे

खुद अपनी ही चाल से

कोइ दर गया होगा

ये दो आँखें देखो

कितने ख्वाब देखती हैं

किसी का इनसे गुज़र कर

वक़्त तहेर गया होगा

कहीं नफ़स ब्राहना है

कहीं आरज़ू सर्घना है

आसान है शिकार होना

शिकार कर गया होगा

उसे मर्घुब चाहतें हैं

बे-बस की शिकाएतें हैं

उसका अब भी वही ठिकाना

वहीं वो फिर गया होगा

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

ये भी एक दौर है



ये भी एक दौर है
ये भी गुज़र जाएगा
ये मस्त खरमाण वक़्त
अपनी चाल बदल जाएगा
इस जिस्म का हेर अंसार
क़तरा क़तरा पिघल जाएगा
बे-ख्वाब इन रातों से
हेर ख्वाब निकल जाएगा
ज़िंदगी एक मुसाफिर का क़ूबा
मुसाफिर चोला बदल जाएगा
रंग बदलते चेहरों का
एक और रंग ढाल जाएगा
ज़ख़्म पुराने कहते हैं
नया हेर दर्द बहाल जाएगा
अभी मई एक हक़ीक़त हूँ
मुझ पेर भी ये कल आएगा

ये बेखुदी कह रही है



ये बेखुदी कह रही है
ये बे-सबब नही है
कोइ दुश्मन होश का है
कोइ होश अब नही है
दीवाना दिल कह रहा है
दीवाना ये कूब नही है
खर्ड का अब क्या करोगे
खीर्ड गर सब नही है
दुनिया से क्या दिल लगाना
दुनिया अपनी जुब नही है
कल का ख्वाब,ख्वाब है
कल गर कोई शब नही है
हेर साँस कस्माकश है
हेर तरफ तू जुब नही है