शनिवार, 26 मार्च 2022

कह रहा है हेर लम्हा अगाही का........................

 



मेरी साँसें चीन रही हैं

मेरी नब्ज़ तुम रही है

का दिन से मिज़ाज अपना

मेरी धड़कन बदल रही है

आख़िर साबित यही हुआ है

बदलना ही नशोनुमा है

अब आयेज खुदा ही जाने

बदले मे क्या क्या बदले

धड़कानों का गर सिला है

तेरी आटा मुझ को चुन ले

दुनिया चकई है गर्दिशों की

ये रोज़ कोई जिस्म कुचले

वो आदम भी क्या थे आदम

जो कभी राह अपनी ना बदले

ये तमाशबीन कूब से

क़यामत के मुंतज़ार हैं

ये जसरत है खाहिशों की

हाथ जिनके जो आया फिसले

वक़्त करता रहा है आगाह

मई बिसात हूँ तू खिलाड़ी

बीच सकता हूँ मगर मई

उसके हाथ मेरी हेर घड़ी है

होल हिरसान ,हैरान, परेशन

तू महज़  हिकमत की एक कड़ी है

कोई डमसाज़ साथ ना चल सकेगा

तेरी नदमातों से ना तूल सकेगा

कह रहा है हेर लम्हा अगाही का

मौत की निउ पेर ही ज़िंदगी खड़ी है

आज की शब खाली हाथ सही.............

 


उन खाली खाली आँखों मे

फिर से कोई ख्वाब जगाएगी

वही चाँद फिर कल उभरेगा

चाँदनी दिल मे उतेर आएगी

आज की शब खाली हाथ सही

कल कोई सुबह सितारा लाएगी

इस तू  तू  मई की  कहानी  की

सारी उम्र ला-हासिल जाएगी

दीवानो दुनिया ज़ाहिर है

अपना इज़हार तुम से  पाएगी

कोई तदबीर करो ना मंज़िल की

इस रसम की राह निकल ही आएगी

तेरे वादे पेर कामिल एमान है

ये दुनिया तुझ से ही शफ़ा पाएगी

हेर दर्द गवारा कर लेंगे..................

 


लोआग मोहब्बत कर लेंगे

दूं वफ़ा  का  भर लेंगे

दस्तूर यही है  जज़बों का

हेर दर्द गवारा कर लेंगे

क्या काम दिल  का दुनिया से

तेरे दिल पे गुज़ारा करलेंगे

ये  उम्र की कोंसि  मंज़िल है

इस घूम से किनारा करलेंगे

कभी होश को तू आवाज़ तो दे

तेरी सदा को सहारा करलेंगे

जुब ढुंदेगी तुझ को नज़र

हेर्सू तेरा नज़ारा कर लेंगे

ये दौर ख्वाब है तिलसिं है

ये पल पल हमारा करलेंगे

महबूब नही कुछ तेरे साइवा

बस महबूब हमारा करलेंगे

रुका हुआ रहनुमा का कारवाँ है..............

 


ये वही होश का इम्तिहान है

वही सारा-सींगी का जहाँ है

बढ़-हवास हैं अहल-ए-दिल भी

रुका हुआ रहनुमा का कारवाँ है

कूब तलाक़ ये खेल हावदीसों से

अब यहाँ ना कोई मकान है

बारहा मैने सोचा खामोशी को

जवाब है तो आख़िर कहाँ है

मुराद कोई बार आए कभी तो

अभी अधूरी दिल की दास्तान है

ज़िंदगी ने करवट बदल बदल कर

कर  दिया आदमी को  नीं-जान है

शुक्रवार, 25 मार्च 2022

आए मा..................



हन मा तू ने ही मुझे हन

काँटों पे चलना सिखाया था

उलझी हुई दुनिया मे सुलझने का

हौसला तुझ से ही तो पाया था

तेरी एक उंगली का सहारा ले कर

ठोक्रों से खुद को बचाया था

आए मा ,तेरी कसोटी बन कर

मैने तुझे  कितना सताया था

उम्र हावदिस हालात के तूफान से

तेरे आँचल ने मुझ को बचाया था

तू मुझे एक पल को नही भूली

मेरी खातिर खुद को भुलाया था

आज मा दामन है तेरा खाली

तेरा गुलशन ही तेरा सरमाया था

उडद गये हाथों से तेरे टोतते

जिन्हें तूने उड़ना सिखाया था

आज उन आँखों मे हैं आँसू

जिन्हों ने कभी तुझ को रुलाया था

देख क्या मर्ज़ी है मेरे रब की

कहाँ तुझ से मुझ को मिलाया था

बरसों बाद तेरे गले से लग कर

मा जाने क्या क्या याद आया था

पठारों तले भी मिलते हैं दिल.............

 




मई अभी तलाक़ हूँ नींद मैं

कोई मेरे होश की डॉवा तो हो

मुझे जगाए कोई खुमार से

मेरा नशा कभी हवा तो हो

ये ज़ार्ब कारी मुझ से कहे

कभी घूम-ए-दिल सवा तो हो

पठारों तले भी मिलते हैं दिल

कोइ तालिब-ए-हुमनावा तो हो

तहेर एक और इल्ज़ाम ले अपने सर

इश्क़ का ये चलन राव तो हो

है गर इश्क़ ख़ाता का पहलू...............

 


है गर इश्क़ ख़ाता का पहलू

तेरे पहलू की ज़रूरत क्या है

माना के और भी घूम हैं

फिर दर्द-ए-मोहब्बत क्या है

हैं एक ज़ीस्ट के झगड़े कितने

आए दिल एक और मुसीबत क्या है

लूटने वाले ने कहाँ ये देखा

आख़िर इन हालात की सूरत क्या है

तेरे माना के हैं लाखों चेहरे

बता इस चेहरे की मुद्दत क्या है

वक़्त तेरे अंदाज़ बड़े हैं क़ातिल

आख़िर एक शाम की क़ीमत क्या है

उस चाँद को लग गया गिरहण............

 


उस चाँद को लग गया  गिरहण

रोशणिओन को जिस पे एतबार था

उन तारों का नसीब खो गया

चाँद को जिन से प्यार था

तमाम शब था जो महू-ए-रक़स

वो बस एक पल का खुमार था

कहीं तो ख़तम होता ये सिलसिला

ये वही सदिओं पुराना इंतिज़ार था

देख चाक चिलमानों की ओट से

वही वहशाटों का तलबगार था

दिल ने समझा जिसे दाना हकीम

वो बेचारा खुद भी बीमार था

कोई राह ढूनडता है,मंज़िल कोई

कारवाँ-ए-सफ़र का यही क़रार था

रहबरी चाँद को भी मक़सूद थी

उसकी यही थी दुआ,यही इसरार था

वो एक लम्हा अब तक प्यासा है.................

 



वो  एक लम्हा अब तक प्यासा है

उसके हाथ मे अब तक कासा है

वही हाल है अब तक दीवानों का

लूब टिशणा हैं होश ज़रा सा है

कोई दूं तूफान उठने वाला है

ये खामोशी सिर्फ़ एक झाँसा है

जो पावास्त है मुझ मे एमान सा

वो ख़याल महज़ एक दिलासा है

आए चाँद एक झलक ने तेरी............

 



आए चाँद एक झलक ने तेरी

देख मुझे टिफ्ल बना डाला

मा ने लाख आईना दिखाया मुझ को

मैने आसमान सर पे उठा डाला

मुझे चाँद चाहिए ला दे

अपने सारे वादे गिनवा दे

यों तो हेर बरस एड्ड आती 

पेर बिना चाँद के होती

जो ऑट से तूने देखा

एक तीर सा दिल पेर फेंका

तेरी कमांड थी एक इशारा

मेरा दिल होगआया तारा तारा

तूने हेर बार कहा ये मुझ से

हम ना मिल पाएँगे तुझ से

फिर ये आँख मिचोली कैसी

तू जैसा है ,हूँ मई वैसी

तू का ख्वाब दिखा कर सोए

एक ख्वाब की खातिर हम रोए

तू चाँदनी रात का वादा

हुमारा हेर दिन तेरा  इरादा

हम रास्ता कभी नही भूले

देख,कभी साथ हमारे होली

देस परदेस लगाएँ फेरा

हमारा काम वही जो तेरा

रास्ता रास्ता रोशन होजाना

तेरी तरहा कोई शब खो जाना

ऐसा क्या माँग लिया है तुझ से

तू जवाब माँगे है मुझ से

ये दौ, पेयच कहाँ से लाए

तेरी हिकमत भी इसे ना कस पाए

मेरे पेश-ए-नज़र बस तू है

तू ही मंज़िल,तू ही जूसतजू है

गुरुवार, 24 मार्च 2022

उजाला मेरे ख्वाबों का...............

 



उजाला मेरे ख्वाबों का

रहने दे सवेरा होने तक

ये सुबहें अक्सर अपने साथ

मालगजे अंधेरे ले के आती हैं

हुस्न यादों का पल भर मे

आँखों से नोच जाती हैं

यों भी दीवानों की चाहत का

कोई मतलब नही होता

ना कोई दीवाना फुरक़त मे

फिर दीवाना होता है ना रोता

के वो तो है ही दीवाना

उसका दिल  आज़ल से है वीराना

दो घड़ी कोई आ के सुस्ता ले

फिर भूल जाता है लौट कर जाना

दर दरवेश का भला कैसे चूतेगा

दिल चाहता है वहीं पे मार जाना

ये इश्क़-ए-पचान है साहेब

आसान नही है इस से बच पाना

दाम दिल के यहाँ महेंगे हैं

मुफ़्त बात-ता है उलफत का पैमाना

दो घूँट के गुनहगार हम भी हैं

इस सुरूर की क़ीमत दो नफ़िल शुकराना

वरना दुनिया मे रखा क्या है.....




आज कितने अरसे बाद 

खोला है मैने इस बक्से को

कुछ पुर्ज़े हैं ये कल के

यही मेरी रूह का हासिल हैं

ये कोरे हैं पेर मेरे हैं

बे-रब्त हैं पेर कामिल हैं

यहाँ कौन समझ पाया है 

हेर कोई जाने के लिए आया है

पेर ये मेरा बक्सा अनोखा है

इसने महफूज़ होना सिखाया है

यहाँ मैने खुद को छुपाया है

यहीं मुझे जीना रास आया है

वरना दुनिया मे रखा क्या है

आए शाम हुस्न तेरा क्यों उदास है.............

 



आए शाम हुस्न तेरा क्यों उदास है

नज़ाने कौन से मंज़र की प्यास है

मई आईं हूँ और वो साना-कार है

दुनिया बदलने का हुनर उसके पास है

तेरी तरहा मई भी एक उम्मीदवार हूँ

मुद्ड़ातों से मुझ को उसकी ही आस है

ये इंतिज़ार तुझे कभी ढालने नही देगा

तू बाक़ी रहेगी जुब तक बाक़ी तेरी आस है

सौ दिल बने तब कहीं उसने खुदा कहा

बस उसी एक लम्हे का खुदा को पास है

कारोबार जहाँ का है कुछ इस तराहा

यहाँ कोई आम है तो कोई ख़ास है

गुम जो कर गाइ वो भी तेरी ही राह थी

दीवानगी मेरी तेरे जुनून की असास  है

ये जो रुका हुआ कारवाँ है......



ये जो रुका हुआ कारवाँ है

खुद मंज़िलों का निशान है

जहाँ चाहूं हो उलफाटों की

वही उसका नया मकान है

बरहा सेहरा ने उस से पूछा

ये क्या तेरे मेरे दरम्यान है

जैसे उफ़ाक़ वासल का है धोका

मेरा तहेरना तेरा गुमान है

नखल जुसातजू का ही है हासिल

सराब ये जहाँ या वो जहाँ है

अब प्यास कोई नही है बाक़ी

हेर क़तरे मे कौसर अयान है

तूने कहा है तू सब जानता है

फिर किस लिए तू बदगुमान है

ये रेत का सफ़र है ना रुकेगा

क़दमों को इसकी खबर कहाँ है

बुधवार, 23 मार्च 2022

जुब भी मई ने खुदा कू याद किया.........

 


जुब भी मई ने खुदा कू याद किया

जाने दिल ने क्यों तुझ को याद किया

जुब क़ुरान रहा मेरे हाथों मे

तेरी खुश्बू ने मुझ को शाद किया

कोई तलब उठी जुब हक़ की सीने मे

तेरे ज़ाहिर ने बातिं को आबाद किया

तेरे क़ुर्ब के तालिब कितने नादान थे

हेर पल खुद से एक नया जहाड़ किया

एक बुनन्द इश्क़ की तुझ से जिन को मिली

किसी को शिरीन,  किसी को फरहाद किया

तू ने कशाफ़  को यों महजूब रखा

कभी खुद को बुलबुल कभी सयाद किया

रोज़ उसकी खामोशी से अजब गुफ्तगू रही............

 


सजाए कितने ख्वाब इस ख़याल से

ताबिर निकल आए शाएेद नक़ाब से

जैसे तिलिस्मात की कोई उन-सुनी दास्तान 

निकल आए शब भर मे किताब से

नौ-उम्र आरज़ू की इतनी सी थी हयात

जैसे भीगी रूटों के दो पल हूबब से

ज़िंदगी चीन कर कहा यही है ज़िंदगी

तेरी क़िस्मत लिखी गई आँखों के आब से

नोक पालक संवारते संवारते खीर्ड की

राज़ हक़ीक़त के पा लिए तेरे एजतिनाब से

रोज़ उसकी खामोशी से अजब गुफ्तगू रही

परेशन सवाल है उसके अधूरे जवाब से

है खबर उसे मेरे हाल की............

 



अजब मीठास है इस ख़याल की

है  खबर उसे  मेरे  हाल  की

गुल  ही गुल खिले  हैं हेर  तरफ

मदाह-सराही है उस बे-मिसाल की

खैर-ओ-शार्र का है वही आईना

जैसे कोई किरण अक़ा के जमाल की

एहतमम इज़हार का कहता है यही

रंग ला रही है रंगत मलाल की

ख़याल मुस्कुरा उठा इस ख़याल से

हैं ये हिकाएतें उसके ख़याल की

बेकल हैं देख आसार जुनून के सारे...............

 



आए मेरा चेहरा बदलने वालो

ये हक़ीक़त तुम पेर भी रक़म होगी

मेरी तीसों का लुत्फ़ उठाने वालो

कसक इन की तुम पेर भी ना कूम होगी

कोई हसरत ना रह जाए तुम्हारी प्यासी

वादा है हेर वार पे गेर्दन खूं होगी

मुझ से मायूस ना हो लहू माँगने वालो

मेरे राग-ए-जान मे ये आमद किसी दूं होगी

बेकल हैं देख आसार जुनून के सारे

तेरी खामोशी दीवानों पे सितम होगी

ना सही मुझ से कोई रोघहबत तुम को

मेरी रोघहबत फिर भी ना कूम होगी

कहीं कोई नायाब लफ्ज़ किसी का.................

 


कहीं है रात का अंधेरा

कहीं है फैला हुआ उजाला

कोई कहीं दिन माना रहा है

कोई कहीं शब को भुला रहा है

दोनो की हसरत यही है

कोई पघाम हम को देदे

कोई पघाम हम से लेले

कहीं किसी का वक़्त तहेर जाए

कहीं किसी का वक़्त गुज़र जाए

ज़हेन-ओ-दिल की कॉफटों से

अपने दिल-ओ-दिमाघ धो ले

कहीं कोई नायाब लफ्ज़ किसी का

किसी की मायूस रूह को छू ले

एक नेरम ताज़ा हवा का झोंका

किसी खुली खिड़की को टटोले

कहीं कोई झरोका कोई झूरी मिल जाए

मई उसकी तमज़ातों को समेटुन

सारी वीरनियाँ उड़ा लूँ

वही दोस्त मेरा सदियों पुराना

इन्ही खुलाओं मे फिर से पा लूँ

कोई कूब से खुद मे खोजता है

अपनी दीवानगी मे ढूनडता है

आए काश हम, हम ना होते

और ये वक़्त के सितम ना होते

आज भी वो न्हंनी सी गिलहेरी

अब भी पहाड़ खोजती है

अपना अगला कॉन्सा है ठिकाना

अपनी क़िस्मत से पूछती है

रविवार, 20 मार्च 2022

एक इसरार पुराना..................

 


रूपोश होगआय गर मेरे ख़याल ये

कों जान पाएगा है किसका कमाल ये

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वो खाना-बदोश है या सरफ़रोश है

एक  इसरार पुराना कूब से खामोश है

लबादा गाड़ा का है शाहों का भेस है

उसकी हेर अदा मे जाँबाज़ों का जोश है

मंज़र निगाहों को घैर का दिखाए वो

वो दोस्ताँ-ए-रहमत का हलक़ा बागोश है

जिसे पनाह ना मिले सबर-ओ-क़रार मे

वहेड ठिकाना उनका एक उसकी अघोष है

कैफ़ उसकी खामोशी, मस्ती है उस से अगाही

माए हैं ख़याल ये,दिल माए-फ़रोश  है


मोहब्बत ना कोई कहानी है..................



मोहब्बत एक नगाहनी है

मोहब्बत ना कोई कहानी है

मोहब्बत सदिओं पुरानी है

मोहब्बत लहू की रवानी है

मोहब्बत आदम से भी पहले

मोहब्बत नूवर-ए-आसमानी है

मोहब्बत है रूह का अंसार

मोहब्बत रब की निशानी है

मोहब्बत ईमान सादिक़ है

मोहब्बत लूह-ए-क़ुरानी है

मोहब्बत दास्तान-ए-सुलायमानी

मोहब्बत सीशसों की ज़ुबानी है

मोहब्बत सिद्दीक़ की ज़ीनत है

मोहब्बत यार की जान-फिशानी है

मोहब्बत शमशीर-ए-हैदर है

मोहब्बत बे-लूस क़ुर्बानी है

मोहब्बत फेरूक का तेवर है

मोहब्बत घनी की हुक्मरानी है

मोहब्बत एहसान खुदा का है

मोहब्बत महबूब--ए-दो-जहानी है

मोहब्बत मोहॅमेड का सदक़ा है

मोहब्बत आशिक़ों की शाडमानी है

मोहब्बत ेज़ाज़ है दिलगिरों का

मोहब्बत दर्द की जवानी है

मोहब्बत इंसान की फ़ितरत है

मोहब्बत रब की ज़ू-फिशानि है

मोहब्बत नज़ान अपनी क़िस्मत पेर

मोहब्बत खुदा की मेहेरबानी है

मोहब्बत महबूब की सूरत है

मोहब्बत हेर पल मनानी है

कभी ऐसा भी हो साक़ि....................

 



कभी ऐसा भी हो साक़ि

मई बन जौन सुराही

मेरा कुछ ना रहे बाक़ी

मेरा शौक़ होजाए पेरवाना

बना डाले मुझे शम्मा

फिर कर्दे मुझ को दीवाना

सितम ये के सितम दर सितम चाहे

दिल ये कैसा करम चाहे

अजब एहसास है इस उलफत का

हेर लम्हा अपना भरम चाहे

मई हूँ और वही ज़िंदन है

अब ना जिस्म है ना जान है

कहने को मेरा वो मेहमान है

आख़िर क्या खाहिश-ए-इंसान है

ये इसरार प्यारा है लायकिन

एक तेरा ख़याल सहारा है लायकिन

तेरी खामोशी पेर गुज़ारा है लायकिन

ताकि धड़कन ये कहती है

यहाँ कोई नदी अब ना बहती है

वही झील सी हैं आँखें

वहाँ अब कोई और रहती है

आए बाद-ए-वफ़ा सुन ले

इस चिलमन को ना सरकने दे

ना इस दीवार को गिरने दे

इस हसरत को यों ही मरने दे

ये वही ज़ब्त की कहानी है

लूब प्यासे और आँखों मे पानी है

 मोहब्बत की ये ज़ीनत पुरानी है

ये चूम चूम करता पानी................

 



बारिश की ये बूँदें

जाने कॉन्सा राग सुनती हैं

ये चूम चूम करता पानी

जाने किस के घर से लाती हैं

ये शोर मचाते भीगे पयड

कहते हैं ये तो पुराने साथी हैं

ये प्यासी धरती से मिल कर

एक नइई महक दे जाती हैं

इन न्हंनी मुन्नी बूँदों से

हुमको प्यार बड़ा है लायकिन

जुब ये मिलती हैं नूं आँखों से

अपना आकार बड़ा कर जाती हैं

अक्सर ये सावन की रातें

इन बूँदों के संग बह जाती हैं

कोई दिल प्यासा है इन बूँदों का

कभी ये प्यासी रह जाती हैं

खाली आँखों मे ये बूँदें

कोई ख्वाब पुराना लाती हैं

आए काश इन बूँदों के संग

किसी को याद हमारी आती हो

बारिश की इस टिप टिप से

कोई बात हमारी सताती हो

माना के तुम बदल हो हम मिट्टी

ये बारिश हक़ हमारा याद दिलाती हो

ख्वाब सी उस झील पेर अक्सर....................

 



इन्ही बहारों के साए मे

कभी कोई मतवाला

अपनी बेरंग दुनिया को

अक्सर आबाद करता था

ख्वाब सी उस झील पेर अक्सर

अपने ख्वाब बुनता था

शादाब शजार के पहलू से लग कर

उसकी सुप्ृूद्गी मे खो कर

अपनी मायूसियों पेर रो कर

वो खुद को भलाया करता था

डाली डाली झुक कर ये कहती थी

दीवाने तेरा कोई हो ना हो 

मई तेरे दस्तरस मे रहती थी

मुझे छू कर एहसास तेरे सारे

संदली होजाया करते थे

मखमली सब्ज़ नज़ारे कहते थे

हम सदा तेरी आँखों मे रहते थे

तूने जुब देखा ख्वाब ही देखा

एक नज़र नॉवज़ की नज़र से मिल कर

फिर तेरी नज़र ने क्या क्या नही देखा

शनिवार, 19 मार्च 2022

एक ख़याल अक्सर ख़यालों मे आ कर............

 



कभी दो घड़ी मुक़ाबल हुए तुम

तो पूछूँ मई तुम से

इस नमकीन पानी का आख़िर

तुमको कैसा नशा है

बैर है खाली आँखों से तुमको

रोज़ एक नया घूम थमा देते हो इनको 

दरया बुर्द करके हैरान क्यों हो

फिर किनारे किनारे बैठे मुस्कुरा कर

पूछते हो खामोश क्यों हो

वो सघर जो ख्वाबों मे आकर

एक सेहरा की अनमीत प्यास को जगा कर

आँखों को नज़ारे का मूशदा सुना कर

ओझल है कूब से नज़दीक आ कर

मगर एहसास का हेर झरोका

मानुस झोंकों का आदि है कूब से

महेकता है एक पल सिसकता है एक पल

एक ख़याल अक्सर ख़यालों मे आ कर

कहता है मुझ से यहीं पेर मिला कर

कहीं ज़िंदगी मलांग है....

 


किसी को तश्नगी गवारा

किसी को जाम की तलब है

यहाँ हेर दिल मोखतालीफ़ है

और हेर आरज़ू अलग है

किसी को चाह है मंज़िलों की

किसी को सफ़र की उमंग है

कहीं दश्त ज़िंदगी है

कहीं ज़िंदगी मलांग है

कहीं उम्मीद हेर सवेरा

कहीं मायूसीओं की जुंग है

कहीं सवाल की है हसरत

कहीं सवाल खुद से तंग है

कहीं सर्ड जान मुंतज़ार है

कहीं शोला नवा दबंग है

कहीं मक़सूद रहनुमा है

कहीं राहबर उसके संग है

ये दुनिया महज़ तमाशा...............




सब से दिल लगाया

एक दिल से नही लगाया

ये दुनिया महज़ तमाशा

ये दिल क्यों ना जान पाया

हेर ज़ुबान मुख़्टालीफ़ है

जिसे दिल समझ पाए

कोई वो बात कर ना पाया

साथ हालात हेर क़दम हैं

कोई रिश्ता साथ हो ना पाया

कहने को हेर शाकस मोहब्बत है

पेर कोई मोहब्बत कर ना पाया

ये दिल,.दिल क्यों पढ़ रहा है

इस सैर-ए-बातिनी से क्या हाथ आया

सदिओं से था जो जमुद तारी

वो एक दिल ना तोड़ पाया

मक़ताल से राह-ओ-रसम है पुरानी

बेकार ही वो ज़ालिम क़ातिल कहलाया

चला ले, तू भी तीर-ओ-नश्तर

इस मुंज़ामीड लहू को कोई ना छेड़ पाया

रूह तो आज़ल से सफ़र पेर है अपनी

 इस जिस्म का ठिकाना रिश्ते कहलाया

आज लगता है हेर आँख अजनबी है

एक अजनबी से जुब से दिल लगाया

ये अज़ाब खाहिशों के.............

 


ये अज़ाब खाहिशों के

भोगने तो होंगे

खाहिशें भी अपनी

दर्द भी हैं अपने

सहने तो होंगे

यहीं तमाम होंगे फ़ैसले भी

यहीं पुकारेंगी आहें

यहीं ख़तम होंगी राहें

यही कस्माकश रहेगी

यहीं चुपके से दिल जलेंगे

यहीं राख भी उडेगी

यहीं जिस्म खाक होंगे

यहीं रूह चाक होगी

के यहीं आरज़ू फली थी

यहीं दिल की दिलागी थी

राह और भी मिली थी

पेर यही भली लगी थी

लुत्फ़ का मोक़ं बस यही है

यह सरमास्तियाँ गवाह हैं

इनकी उम्र दो घड़ी है

दो-रंगी तीन खाहिशें ये

एक रंग तकमिल की थी चाहत

दूजा था क़ुद्रट की अमानत

क्यों ना वो रंग चुना तू ने

जिस से तेरी ज़ात धूल गई थी

तेरे ख्वाब सिर्फ़ हसीन थे

ताबिर उनकी बस यही थी

एक दर्द मे डूबा हुआ दिल

दो आँखें खून से तार

ये खून है खाहिशों का

जिन्हें ये साँझ मे ना आया

रब जुब सामने खड़ा था

क्यों खाहिशों से दिल लगाया

एहसास के दरीचे



एहसास के दरीचे 

बाँध क्यों पड़े हैं

सहें-ए-आरज़ू भी 

क्यों है सूना सूना

जुब मोक़बाल हसरतें हैं

फिर दिल बेताब क्यों नही है

मोसां की आब-ओ-ताब हैरान

ये किस दिल से मिल गये हैं

जो  कभी बहार खुद था

जो खुद चमन चमन था

जिसका हेर लफ्ज़ लालावी था

जो था इश्क़ बा मुजासाम

जिस का ख़याल जुनून-ए-मजनूं

थी जिसकी कॅज़म नवीद-ए-महताब

जिस का सुखन थे

बाद-ए-सहेर के नाघमत

उसके आज़म-ओ-अहद को क्या हुआ है

जो रंग शोला-ओ-शबनूमी थे

जो वक़्त से मायूस ना कभी थे

तक़दीर थी जिसकी निशात तबाई 

दिलगिरों के हालक़े मे क्यों खड़ा है

ये लिबास मातमी से

उसके आज पेर क्यों चड़े हैं

वो हसीन कल, दोस्त बन कर

शाएेद कल ही मे खो गया है

वो ख़ुस्लिबास दिल का मोसां

क्यों तार तार होगआया है

आख़िर ये बिजली क्या यहीं गिरी थी

या फिर ये भी एक रहबरी थी

के वक़्त और मोसां 

दिल ना बदल सकेंगे

ये दौर चाहे बदलें

हम ना बदल सकेंगे

मोहब्बत की लॉरी एहसास को सुना कर

यादों को अपनी हसीन माज़ी बना कर

हेर ज़ख़्म रब का तोहफा कहेंगे

कहीं कोई गुल कभी तो खिला था

कहीं कोई नादिया हम से भी आ मिली थी

जिसकी हसरत मे ख़यालों को सँवारा

दो क़दम पेर दिल की वो गली थी

बस इतना सा हम को गीला है

जुब भी मिला वो,घैर बन के मिला है

अंजाम दर्द का बेशक भला है

रब के इश्क़ का ये भी एक सिलसिला है

रोज़ सौदा है ये जीवन..................

 



रोज़ नया तमाशा है

रोज़ नया है पागलपन

रोज़ वही है दिल आज़ारी

रोज़ सदाएं देता मून

रोज़ मुझे बहलाता है

रोज़ उठता है चिलमन

रोज़  बिके है  बे-विक़त

रोज़ सौदा है ये जीवन

रोज़ नज़र चुराएँ आँसू

रोज़ बरसता बिःतेर सावन

रोज़ पहेली क्यों लगता है

रोज़ वही ढूंडला दर्पण

रोज़ फिर ताज़ा होता घूम

रोज़  सजती ख़याली दुल्हन

रोज़ सताती है  खामोशी

रोज़ पुकारे  तुझ को मून

बुधवार, 16 मार्च 2022

सारा जहाँ बना आदम के लिए.....................

 



अजब मखलुख है मौला तेरी

अजब है तेरे खालख़ का कारवाँ

सारा जहाँ बना आदम के लिए

फिर भी आदमी ढूनडता है मकान

चुनटीयों ने खोजा ज़मीन का राज़

परिंदों को काफ़ी ना हुआ आसमान

तिंकों की नीयू पेर बिछाए अपने पार

अपनों के लिए बनाया हसीन आशियाँ

घारों को बनाया मिसकिन शाह-ए-दश्त ने

चोपायों ने कहा हम भी लामकान

आदमी ने सीखा इन्ही से सालीक़ा-ए-ज़िंदगी 

आदमी इंसान बना इन्ही के दरम्यान

ये दर ये दीवार क्या बनाएँगे घर

ये है बस आम सा खाहिशों का कुँवान

गर आदम के सीने मे करवट ना लेगा दिल

उसका ठिकाना ना ये ज़मीन ना वो आसमान

ये ज़रूरत नही है आदम ज़िंदगी की तेरी

ये तेरा मोक़ं है ये तेरा मकान

खुदा का ेज़ाज़ है ये हस्ती तेरी 

तेरी हस्ती से क़ाएँ है तेरा जहाँ

ज़माने की गर्ड मे इसे ना मालूस कर

के तेरी राह मे ही है तेरी मंज़िल अयान

था एक नूवर का पैकर तू.....................

 


कल

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इन खिलती कलियों से

तेरे लूब बड़े प्यारे थे

इस शफ़ाक़ की लाली ने

तेरे रुखसार संवारे थे

उन न्हंनी आँखों मे

मानो चाँद सितारे थे

जैसे फूलों से गूँधा था तू

तुझ से चमन के वारे न्यारे थे

था एक नूवर का पैकर तू

तुझ मे क़ुद्रट के इशारे थे

एक तब्बासुम ने तेरे मुझ से

चीन लिए घूम सारे थे

आ तुझे सीने से लगा कर हम

भूल गये अपने गलियारे हे

तू मिला एक साज़ नया बन कर

हम सदियों से सोज़ के मारे थे

तू इसरार था रब का जान मेरी

हेर पल हम खुद को हारे थे

था तेरा लांस खुदा की क़ुरबत 

तुझ मे उसके जलवे सारे थे

ता-उम्र माँगी थी जो दुआ हुँने

तुम मेरी उम्मीद से प्यारे थे

अपनी उलफत भेजी रब ने तुम मे

सारे रंग उसके बड़े न्यारे थे



आज

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उम्मीद का हेर मोसां

तेरे लफ़्ज़ों ने जला डाला

दिल-ए-मादार जो क़िला था कल

उसे एक पल मे हिला डाला

कल जैसे कोई नही आया

आज मे उस कल को सुला डाला

इस तू तू मई की जंग पुरानी से

हेर एहसास को ज़ंग लगा डाला

कूब वो एहसास हुए ज़ाएल

इस दौर ने साएल उनको बना डाला

क्या वक़्त उस कल को मिटाता है

या इंसान ने उसको मिटा डाला

आज का हेर पहलू कल से जूड़ा है गर

फिर उस कल से किसने तुझको कटा डाला

एक आसान ज़ुबान है मा तेरे उलफत की

तेरे लहू से तूने एक दिल बना डाला

वो जिस्म भी तेरा है वो दिल भी है तेरा

ये किसने हुकूमत का सिक्का बिता डाला

यहाँ दौर बदलते हैं और हुकूमत भी

देख रंग मोहब्बत का कितनों को सज़ा डाला

आए रात तुझे पत्ता है.......

 


आए रात तुझे पत्ता है

शम्मा के साथ क्या हुआ है

नही ये ख्वाब की खुमारी

ये है उमरभर की बेक़ारारी

ये नसीब है शम्मा का

बे वासल मिटने की तय्यरी

कोई पेरवाने से भी तो पूछे

क्या तेरी उलफत भी है अय्यरी

शातिर वक़्त का है तू निशाना

कैसे बचेगी कोई तक़दीर की मारी

तेरी रोशनी मे भीगा हुआ हुस्न है

उसपेर जान लेवा पेरवाने की गुलॉकारी

शब भर मे कितने दिल सुलाघ उठे

कोई जी उठा कोई करे अलविदा की तय्यरी

मेरी मान जेया अभी खुद को ना जला

तू नही जानती पेरवाना है सरकारी

एक तू ही नही है इस जहाँ मे बेबस

बेहिससी मे उसकी छुपी है खाकस्ारी

मिट जाना किसी पेर आम तो नही है

मिस्ल शम्मा किसी ने ना जान अपनी हारी

दोस्ती ....

 



हुज़ूर दोस्ती मे सिर्फ़ दिल की राय ली जाए

दुश्मनों को भी दोस्ती की राह दी जाए


मौत को भी अब मुयस्सर नही है आदम 

रोज़ ज़िंदगी से क्यों तकरार कोई की जाए


साँस साँस घबरा के खुद से कहती है

मुझे फिर कोई वजह ज़िंदगी की दी जाए


कश्टियाँ खड़ी हैं अपनी बेचैनी छुपाए

मुझे मे भी ज़िंदगी की सैर कोई की जाए


ज़ख़्म तो ज़ख़्म हैं क्या हाल क्या माज़ी

भूल कर भी खुदरा ना कोई भूल की जाए


डुबोया हो जिसने खुद को तेरी निगाहों मे

अब उस से कहाँ माए आरज़ी कोई पी जाए

वो कल आज भी गूंजा करता है.....

 


वो कल आज भी गूंजा करता है

वो कल आज भी ख्वाब सा लगता है

वो कल आज भी दिल की षादबी है

वो कल आज भी दिल की बाज़याबी है


आ कोई दिल सुना करता था

कोई साथ आहें भरता था

कोई पहलू महकाया करता था

कोई आँखों मे रंग भरता था


सब तब की ये बातें तीन

जुब दिन अपना था अपनी रातें तीन

चाहे छूँड ही मुलाक़ातें तीन

तमाम उम्र की सौघातें तीन


जिस पेर पतझड़ का साया था

एक नया मोसां उस पेर आया था

एक बुउन्ड माँगते का सरमाया था

वही बुउन्ड लूटा कर आया था


क्यों अपनी उम्मीद पे रोया करता है

क्यों खुद को इन मे बोया करता है

क्यों अपनी खामोशी गोया करता है

क्यों बेकार दामन भिगोया करता है


फ़ाक़ात एक डॉवा है तेरे ज़ख़्मों की

बस है एक ही मरहम बेचैनी का

अपने हवासों को फिर कल से मिला

वहीं मौजूद है तेरे घूम का सिला

क्या बतौन तुम को मई के हाल कैसा है........

 



क्या बतौन तुम को मई के हाल कैसा है

इस खुशरांग मोसां मे मलाल कैसा है

नब्ज़ आशना जानता है धड़कानों की लाए

हेर एहसास हैरान है वो कमाल कैसा है

रुकती हुई साँसों को वो रुकने नही देता

अपनी आँखें माल्टा हुआ ये विसाल कैसा है

दूं तोड़ती उम्मीद के मोक़ाबिल याद है उसकी

गर मोहबत ईमान है तो सवाल कैसा है

तलब की जूसतजू गर ज़ाया करड़ेगी हासिल को

फिर खुदा बंदे का रिश्ता लाज़वाल कैसा है

सदा इन ख़यालों से गोया है तेरी खामोशी

एक रिश्ता उनसुना है पेर बेमिसाल कैसा है

चाहतें ज़िद हैं मंज़िलों की.......

 


जिसने चाहा हो ज़िंदगी कू

ज़िंदगी उसके लिए नफी है

चाहतें ज़िद हैं मंज़िलों की

ज़िंदगी इनमे कहीं नही है

कभी खुद को आज़मा के देखो

वाँ खुद की हार ही छुपी है

बुलंदियों पेर, जिसकी नज़र टिकी है

पासटीओं मे भी उसका गुज़र नही है

माना हेर कोई हम पे हुक्मरन है

जिस्म झुक गया है पेर आँख तो उठी है

हक़ गो गुज़र जा,दिल मे किसी के चाहे

अपने ही हक़ पेर उसकी नज़र नही है

दुनिया रिश्ते, सब खेल हैं तमाशा

पेर तुझ सा मदारी और कोइ नही है

ये सीने से कैसी, आवाज़ें उठी हैं

सदिओं की घुटन से, आज़ादी तो नही है

दिल के मखमसों से आरी हुआ दिल

दीवानगी की मेरी ,ये क़ीमत तो नही है

अब ना है हयात बख़्श, आब-ए-हयात कोई

कहीं इसमे भी कोई, मिलावट तो नही हुई है

चीन ली तूने मेरी बेक़ारारी.......

 


मैने कहा चीन ली तूने मेरी बेक़ारारी

उसने कहा खा और ज़ार्ब कोई करारी

मैने कहा मई ही क्यों नसीबों की मारी

उसने कहा तू लगती है मुझ को प्यारी

मैने कहा आख़िर कैसी है तेरी यारी

उसने कहा यही फेरमन हुआ था जारी

मैने कहा शब खून की नही थी टायारी

उसने कहा सिफ्फक होता है अहलकर सरकारी

मैने कहा मई सदिओं से बिरहा की मारी

उसने कहा नादान अब वासल की है बारी   

यहाँ चराघ हैं नही है रोशनी......

 



यहाँ चराघ हैं नही है रोशनी

यहाँ हुस्न है नही हैं रौनाक़ें

यहाँ जवान हैं नही हैं हौसले

यहाँ गुमान है नही हैं हक़ीक़तें

यहाँ इखतरा पसंदों की भीड़ है

यहाँ राह है नही हैं मंज़िलें

यहाँ मुयासर नही है वक़्त को आदमी 

यहाँ दिल तो हैं, कूम हैं मोहब्बतें

यहाँ तरीकियाँ तारिक़ कर गायें ज़हेन

यहाँ सुबहें हैं नही हैं सोहबातें

यहाँ सब कुछ है नही हैं क़ुरबाटें

यहाँ आदमी ही आदमी नही हैं फुर्सतें

जूसतजू मेरे ख़याल की.....



जूसतजू मेरे ख़याल की

गर तेरे ख़याल से मिल गाइ

जो बिसात बरसों बिछी रही

गर क़िस्मत वो बाज़ी चल गाइ

गर यक़ीन को मुराद हासिल ना हुई

साँझ लो ज़िंदगी से  रूह भी गई

मुज़माल मोसां भी खामोश हैं

वक़्त की सुई इसी ख़याल से तुम गाइ