ये वही होश का इम्तिहान है
वही सारा-सींगी का जहाँ है
बढ़-हवास हैं अहल-ए-दिल भी
रुका हुआ रहनुमा का कारवाँ है
कूब तलाक़ ये खेल हावदीसों से
अब यहाँ ना कोई मकान है
बारहा मैने सोचा खामोशी को
जवाब है तो आख़िर कहाँ है
मुराद कोई बार आए कभी तो
अभी अधूरी दिल की दास्तान है
ज़िंदगी ने करवट बदल बदल कर
कर दिया आदमी को नीं-जान है
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