बुधवार, 27 मई 2009

मेरा परिचाए



दोस्तो…….मेरा परिचाए केवल इतना ही, मई एक गुमशुदा नहर (केनाल) थी आप सब मे शामिल होकर दर्याफ़्त होगआई….ये खुदा की ही मेर्ज़ी थी के उन दिलों को क़लम थमा दिया जाए जिनसे उसे अपनी वाणी सुनने सुनाना चाहता था..और उनके लिए एक रहनमुआ भी भेजा उसने…दर्द से बड़ा रहनुमा और कोइ कहाँ…सो दर्द को हवा डेडी गई…और क़लम खुद खुदा कहता गया…दर्द मोहब्बत मे बहता गया…बस यह रही मेरी मेरे क़लम की दास्तान,तारूफ़ …मुझे उम्मीद है के मज़ीद तारूफ़ की कोइ ज़रूरत नही होगी…के क़लांकार समाज की डरोहर होता है..आप सब ने अपना बनाया मेहेरबानी आपकी….खुश रहें…

रहना चाँद

मंगलवार, 26 मई 2009

आना के महल



आना के महल दिल की ज़मीन पेर
क़ायम ना रह सकेंगे यक़ीन कर
सोच की लकीर हूँ तेरी जबीन पेर
तुझ से कब जुड़ा हूँ यक़ीन कर
सब कुछ मिला है हम-नशीन पेर
फिर भी कोई कमी है यक़ीन कर
सफ़र हक़ीक़तों का सदा था टाईं पेर
राह भटका गया रहबार यक़ीन कर
हेर वक़्त है नज़र अपने मकीन पेर
है"चाँद" इशारे का मुंतज़ार यक़ीन कर

गर साज़ नही



गर साज़ नही सोज़ से हुमें बेहलाइए
ज़रा क़रीब आइए और हुमें जान जाइए
सुन तो लीजिए दिल-ए- बेखरार का मुडदुआ
शिकायट ही सही आज बस मान जाइए
मुद्दत हुई किसी पे एतबार किए हुए
दिल चाहे आज किसी पे क़ुरबान जाइए
खामोशी सी खामोशी है क्यों हेर तरफ
बाज़म-ए-इश्क़ मे बन के मेहमान जाइए
शम्मा हुस्न की जले इश्क़ की चले हवा
पेरवानों पे तक़दीर भी मेहेरबान जाइए
क़लम कहे मई तेरा दिल लिख तो लून
"चाँद" राह-ए-वफ़ा का शाहिद मेरी जान जाइए

मई हैरान हूँ आज कल.....


मई हैरान हूँ आज कल
मजनू यहाँ पे मिलते है
लैला की तलाश जारी है
इनका ग़रेबान भी चाक है
और चेहरे पेर मलाल भी
दिल भी भारी भारी है
इश्क़ का कोई मेयर नहीं
ना वाडा-ए-वफ़ा की क़ैद है
एक जुनून सा तारी है
हेर चेहरा महबूब नज़र आए
दिल की अजीब हालत है
इश्क़ नही कोई बीमारी है
सब कुछ नज़र का धोका है
लूब-ओ-रुखसार की सुर्खी भी
इश्क़ भी अब अदाकारी है
मेरी तरफ ना देख ज़माने
मैं तेरा ही शाहकार हूँ
फिर बदलने की टायारी है
मोहब्बत एक हसीन इबादत है
कूब समझेंगे ये दिल वेल
"चाँद"इश्क़ मुकामल बेक़ारारी है 

मुझे पुकारा नहीं किसी ने



मुद्दत हुई मुझे पुकारा नहीं किसी ने
मूड मूड के देखती हैं मायूसियान मेरी
दिल-ए-ज़र का नक़्शा बिगड़ रहा है
आ के समेत-ले कोई उदासियान मेरी
क्या समान करूँ जो बखशीश मुझे मिले
या-रब आख़िर होंगी कूब सुनवाइयाँ मेरी
बर्फ बन गईं जज़बों की सारी नदियाँ
साथ हैं वही बे-सर-ओ-सामानियाँ मेरी
बार बार टूटा वो दिल नहीं रहा
अब और क्या बढ़ेंगी परेशानियाँ मेरी
हमक़दम ना बन सके जो साथ थे
हैं वही सुनसान रास्ते और तनहाईयाँ मेरी
हर रिश्ता सर्द और साँसों सा बे-वफ़ा
क्या क्या मंज़र दिखाएँगी नादानियाँ मेरी
खफा होने का हक़ भी चीन गया
“चाँद”बस मई हूँ और पाशेमानियाँ मेरी

मेरी आरज़ू



संभाले ना संभले है मेरी आरज़ू
एक तेरे मिलने की आस बहुत
हैं मचलती साँसों के तक़ाज़े का
एक तेरे लांस का एहसास बहुत
हसरातों की अजी बात क्या पूछिए
सदियों तक रही इन की प्यास बहुत
मिल जाती अगर माँगने से हूमें
वो मोहब्बत ना आती रास बहुत
तोहफा गुलबों का किस किस से मिला
सदिओं महकता रहा यह एहसास बहुत
रुके थे लबों पर फसाने का
खमुषी की आड़ा थी ख़ास बहुत
मोहब्बत अदीबों का ही अतिया सही
'चाँद" ने किया इसका पास बहुत

आधे अधूरे इंसानों की ये बस्ती है


आधे अधूरे इंसानों की ये बस्ती है
गिरान मोहब्बत,सस्ती बस एक हस्ती है
एक सवाल है बचपन ख्वाब जवानी है
उम्र हसरातों की चक्की मे पीसती है
गर तमघा है फ़क़ीरी सीने से लगा
ठोकराओं मे फिर क्यों उसकी हस्ती है
हिकमत तेरी और ज़द्द पेर दिल कितने
एक इशारे को तेरे खुशी तरसती है
अछा और बुरा दोनो मया-जाए हैं
सबर की ही कमी बुरे मे डिस्ती है
दे कर ज़ेह्न--दिल फ़ाक़ात बदनाम किया
अंजाम--ज़ीस्ट की डोरे क़ुद्रट कास्ती है
मेरी तमन्ना हेर दिल को मिले यक़ीन
कामिल ईमान, आला, अफ़ज़ल ,हक़-परस्ती है
घूम के मारों को मिले मसीहा फिर
इस िनायट के बदले क़यामत सस्ती है
पयाँ मोहब्बत का हो हेर दिल मे
दायर--उलफत मे रहमत तेरी बरसती है
सौ ख्वाबों पेर एक आटा भारी है
तू जहाँ"चाँद"वहीं पे बस्ती है

ना चीनो नादनो


ना चीनो नादनो मुझ से जवानी मेरी
बड़े नाज़ नखरों से रुकी है अभी
जो जेया के ना आए वो बाहर है
इष्क़ की फ़िज़ा मे डोले है अभी
खूबसूरत है ये,बे-वफ़ा है ज़ालिम अदा
हेर नज़र उस की महबूब है अभी
क़ातल महबूब जाने,इस ने कितने किए
हेर वार इस का कारी है अभी
हुस्न को है इबादत का दर्जा दिया
और खुद काफ़िर बनी खड़ी है अभी
लम्हा लम्हा जीने दो इस में मुझे
ज़िंदगी का इस में मज़ा है अभी
वो मेरी हम सफ़र है हमराज़ है
चाँदकभी रुकी ना रुके है अभी