ये अज़ाब खाहिशों के
भोगने तो होंगे
खाहिशें भी अपनी
दर्द भी हैं अपने
सहने तो होंगे
यहीं तमाम होंगे फ़ैसले भी
यहीं पुकारेंगी आहें
यहीं ख़तम होंगी राहें
यही कस्माकश रहेगी
यहीं चुपके से दिल जलेंगे
यहीं राख भी उडेगी
यहीं जिस्म खाक होंगे
यहीं रूह चाक होगी
के यहीं आरज़ू फली थी
यहीं दिल की दिलागी थी
राह और भी मिली थी
पेर यही भली लगी थी
लुत्फ़ का मोक़ं बस यही है
यह सरमास्तियाँ गवाह हैं
इनकी उम्र दो घड़ी है
दो-रंगी तीन खाहिशें ये
एक रंग तकमिल की थी चाहत
दूजा था क़ुद्रट की अमानत
क्यों ना वो रंग चुना तू ने
जिस से तेरी ज़ात धूल गई थी
तेरे ख्वाब सिर्फ़ हसीन थे
ताबिर उनकी बस यही थी
एक दर्द मे डूबा हुआ दिल
दो आँखें खून से तार
ये खून है खाहिशों का
जिन्हें ये साँझ मे ना आया
रब जुब सामने खड़ा था
क्यों खाहिशों से दिल लगाया
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