बुधवार, 10 मई 2023

ये नये रतजगों की नूमी है..............

 



ज़िंदगी नये सफ़र पेर

लगता है निकल गाइ है

शाएेद दिल की दुनिया 

रंग अपना बदल गाइ है

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ख्वाब सफ़र के रास्तों को

मुसफेरों की क्या कमी है

ख्वाबिदा आँखों मे आए दिल

ये नये रतजगों की नूमी है

ना घूम है ना खुशी है

नब्ज़ भी थमी थमी है

लिपटी है कोहरे मे दुनिया

या ढूंड सोचों पेर जमी है

ज़िंदगी ,ज़िंदगी लगती नही है

शाएेद,तेरी साँसों की कुमी है

सुरघ उस जहाँ का मिल गया है

इस सफ़र पेर तू तन्हा नही है

दिल की आ-ओ-फिघन है..............

 


इन  खामोशियों  की

अपनी  अलग  ज़ुबान है

इस चुप की दास्तान मे

सिमटा  हुआ  जहाँ है

बारहा उसको सुना है

कहता कुछ कहाँ है

अभी कुछ उनसुना है

दिल की आ-ओ-फिघन है

दुनिया से कर्दे घफ़िल

नज़रों का कारवाँ है

सोहबत के दो घूँट पीले

इस  आलम का  वो कहाँ है

तालिब के दिल सुन रहा है

तलब खुद पाशेमान है

रास आ जाए हुमें भी 

खामोशी जो हुक्मरन है

ये सफ़र है अगाही का...............



ये सफ़र है अगाही का

फ़हँ की रहगुज़ार है

तेरी याद है दस्तगिरी

हुर्फ़ हुर्फ़ तेरी नज़र है

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आसमान भी है रोशन

मोसां भी है गुलाबी

सबा हेर तरफ एक्सी है

एहसास तहेर गये हैं

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नब्ज़ की गर्दिशों मे

एक धमक सी छुपी है

साँसों की लघज़िशों मे

कोई आ मचल रही है

शिकायट भी बर्टरफ है

शाम-ए-घूम ढाल रही है

दिल के रंग क़ौस-ए-क़ज़ा हैं

मुस्सावेर की हिकमत यही है

जीने मरने के हैं सालीक़े

रसम-ए-वफ़ा उसी की कड़ी है

घूम हुस्न हैं ज़िंदगी का

उन्ही से तेरी तकमिल होरही है

इन सारे मखमसों का हासिल

तुझे नजात कोफ़टोन से मिली है

बंदे तेरी ज़ात एक आईना है

उसी से मुनकेस रोशनी होरही है

तेरा चाहना कमाल तो नही है

उसकी चाह से बात सब की बनी है

गूँज दिल की जुब तक ......................

 



कारखाना-ए-क़ुद्रट मे जो छुपा है

तेरे नादान बंदे को क्या पत्ता है

जो महज़ खाना पूरी मे लगा है

इसके घौर-ओ-फिकीर के दरम्यान फासला है

इन फसीलोन मे बंदा उलझ के रह गया है

कभी डॉघड़ी इस पूर्फरेब जहाँ से निकल पाता

अपनी ज़ात का जमाल उसको नज़र आता

ये कमाल उसकी अपनी ज़ात का नही है

खलिख की हिकमतों को समझ जाता

के ये जुंग जो " मई " की लगी हुई है

फरेब-ए-नज़र के साइवा कुछ नही है

तुझ मे " तेरा " कुछ भी नही है

दोनो आलामों मे तू तन्हा नही है

तेरे पल पल की खबर ताशीर होरही है

बनाने वाले ने तुझे आईना ही बनाया

तुझे ही आईनों का मक़सद समझ ना आया

ज़िंदा होना ज़िंदगी की नही है दलील कोई

गूँज दिल की जुब तक नाला-ए-हक़ नही है

खिलाफ फ़ितरातों के सदा लदी है जुंग तू ने

कभी अपनी दोरंगी नियतों के रंग आज़माता

तुझे गुल भी चाहिए गुलचीन की रोघहबतें भी

मुमकिन ही नही , मुहाफ़िज़ खारों से निकल जाता

रफ़्ता रफ़्ता रफ़्तार ज़िंदगी की समझा ही लेगी

आया ज़रूर है , खाली हाथ कोई नही जाता