बुधवार, 20 जून 2012

ये चाँद नही है देखो...........



ये चाँद नही है देखो
ये अक्स तुम्हारा है
अब ना ज़मीन मेरी है
ना आसमान हमारा है
सोने वालों ने कहाँ देखा
ये शब भर का सितारा है
इसका नक़्श,निगार ना पाए
ये सब से न्यारा है
कोई दूं जो बिछड़ जाए
उलफत के मारों का क़सरा है
उसकी हेर नज़र  इनायट है
उसका तबस्सुम बड़ा प्यारा है
गुफ्टअर नेरम,रफ़्तार बरक़ उसकी
अजब पलभर का नज़ारा है
एक करिश्मा सी है ज़ात उसकी
उसकी सोहबत पेर ही गुज़ारा है
वही मेरे ख़याल का महावीर
वही मेरे लफ़्ज़ों का सहारा है

मंगलवार, 19 जून 2012

कुछ पुर्ज़े हैं ये कल के............





आज कितने अरसे बाद 
खोला है मैने इस बक्से को
कुछ पुर्ज़े हैं ये कल के
यही मेरी रूह का हासिल हैं
ये कोरे हैं पेर मेरे हैं
बे-रब्त हैं पेर कामिल हैं
यहाँ कौन समझ पाया है 
हेर कोई जाने के लिए आया है
पेर ये मेरा बक्सा अनोखा है
इसने महफूज़ होना सिखाया है
यहाँ मैने खुद को छुपाया है
यहीं मुझे जीना रास आया है
वरना दुनिया मे रखा क्या है