अजब मखलुख है मौला तेरी
अजब है तेरे खालख़ का कारवाँ
सारा जहाँ बना आदम के लिए
फिर भी आदमी ढूनडता है मकान
चुनटीयों ने खोजा ज़मीन का राज़
परिंदों को काफ़ी ना हुआ आसमान
तिंकों की नीयू पेर बिछाए अपने पार
अपनों के लिए बनाया हसीन आशियाँ
घारों को बनाया मिसकिन शाह-ए-दश्त ने
चोपायों ने कहा हम भी लामकान
आदमी ने सीखा इन्ही से सालीक़ा-ए-ज़िंदगी
आदमी इंसान बना इन्ही के दरम्यान
ये दर ये दीवार क्या बनाएँगे घर
ये है बस आम सा खाहिशों का कुँवान
गर आदम के सीने मे करवट ना लेगा दिल
उसका ठिकाना ना ये ज़मीन ना वो आसमान
ये ज़रूरत नही है आदम ज़िंदगी की तेरी
ये तेरा मोक़ं है ये तेरा मकान
खुदा का ेज़ाज़ है ये हस्ती तेरी
तेरी हस्ती से क़ाएँ है तेरा जहाँ
ज़माने की गर्ड मे इसे ना मालूस कर
के तेरी राह मे ही है तेरी मंज़िल अयान
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