मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

या सदा थी एक ख़याल की




या सदा थी एक ख़याल की
एक ख़याल की थी िबतिडा
ख़याल ही ख़याल मे
तराश लिया एक दिलरुबा
अब ज़माने से क्या कहूँ
ख़याल को तू कैसे मिला
राज़-ए-हक़ जानता नही कोई
इज़हार उसी से हुआ बरमाला
मई इश्क़ की सूरत हूँ ज़रूर
मई हूँ नियतों का सिला
मेरा अक्स तेरा ख़याल है
तेरा दिल होगा मेरी सदा
क़ासिद हूँ तेरा प्याम हूँ
तेरा लफ्ज़ लफ्ज़ मेरी दुआ
अजीब दास्तान है ये ज़िंदगी
हेर आरज़ू मे खुदा मिला
जुब रूबरू-ए-ख़याल होगआय
फिर कोइ पेरडा ना रहा
आईं क़ुद्रट के रुक्ण का
मेरा सुखन है एक सिलसिला

बुधवार, 2 दिसंबर 2009

आए घूम-ए-बे-करां


आए घूम-ए-बे-करां

तू कहाँ नही,कहाँ नही
ना हो परेशान मेरी गाज़ल
नज़्म ना बिगड़ जाए कहीं
ज़ब्त-ओ-जज़्ब का ही रिवाज हो
फिर कहीं जज़बों की मेराज हो
एक मौक़ा होजाए गर आटा
फिर ख़याल पालेटा है खुदा
आए उदास रत्त तेरी क़सम
मैने भुला दिए रंज-ओ-घूम
इन्ही मे खुशी के राज़ हैं
सोज़-ओ-साज़ एक ही अंदाज़ हैं
कभी गुज़रो किसी दर्द की शाम से
देखना होज़ाएँगे दर्द अपने आम से
सदिओं से ज़िंदगी का यही है चलन
ये कभी खार है कभी चमन
मई कहीं नहीं,तू है कू बा कू
मालिक रहे तेरा करम और मेरी “हू’

ये रात का फुसून है


ये रात का फुसून है के
उदास शाम का क़ुसूर है
ये दिल की बात है दिलरुबा
कहीं तेरा ख़याल ज़रूर है
तू मोक़ं है मई हाल हूँ
मेरा कैफ़ तेरा शऊर है
मई अभी महू-ए-ख़याल हूँ
तू साहेब-ए-हुज़ूर है
मई एक भटकती शमा
तू दयार-ए-नूवर है
मेरी रोशणिओन का राज़ तू
तेरे दम से मेरा ज़हूर है
सब ने बस देखा तुझे
दुनिया का ये ही दस्तूर है
नज़ाने क्यों है यक़ीन
तेरे भेस मे कोई और है
हाला हूँ मई है चाँद तू
तू ही मेरा घुरूर है