गुरुवार, 24 मार्च 2022

उजाला मेरे ख्वाबों का...............

 



उजाला मेरे ख्वाबों का

रहने दे सवेरा होने तक

ये सुबहें अक्सर अपने साथ

मालगजे अंधेरे ले के आती हैं

हुस्न यादों का पल भर मे

आँखों से नोच जाती हैं

यों भी दीवानों की चाहत का

कोई मतलब नही होता

ना कोई दीवाना फुरक़त मे

फिर दीवाना होता है ना रोता

के वो तो है ही दीवाना

उसका दिल  आज़ल से है वीराना

दो घड़ी कोई आ के सुस्ता ले

फिर भूल जाता है लौट कर जाना

दर दरवेश का भला कैसे चूतेगा

दिल चाहता है वहीं पे मार जाना

ये इश्क़-ए-पचान है साहेब

आसान नही है इस से बच पाना

दाम दिल के यहाँ महेंगे हैं

मुफ़्त बात-ता है उलफत का पैमाना

दो घूँट के गुनहगार हम भी हैं

इस सुरूर की क़ीमत दो नफ़िल शुकराना

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