सोमवार, 14 मार्च 2011

गुज़रे दिनों की धूप ने.....



गुज़रे दिनों की धूप ने
ये नये शजार उगाए हैं
फिर ज़िंदगी के इस सफ़र मे
ये नये मोक़ां आए हैं
वक़्त मोसां ना मिटा सके
ऐसे निशान हम लाए हैं
दाघ जिस के तमघा-ए-हयात
वो चाँद हुँने सजाए हैं
जहाँ तलब मोहबत है फ़ाक़ात
हम उन्ही के मा-जाए हैं
एक दिल की जूसतजू का है फल
काई दिल पास पास आए हैं

ये मेरी चाहतों को.............



ये मेरी चाहतों को
आज क्या हुआ है
कुछ सोचना भी चाहूं
ज़हन क्यों सूना पड़ा है
वो ख़याल क्या हुआ
जहाँ तू आ बसा था
वो दिल कहाँ गया
जो तुझ से जेया मिला था
दर्द की हेर गली
आज वीरान पड़ी है
ज़िंदगी फिर से कोइ
सवाल लिए खड़ी है
कौन हूँ मई आख़िर
क्या चाहती हूँ ज़िंदगी से
ये कस्माकश कह रही है
ये पहचाहन की एक कड़ी है
कूब ख़तम खेल होगा
कूब कोई सिरा मिलेगा
मई उसको थाम लूँगी
फिर तुझ से आ मिलूंगी
शाएेद वही है मेरी मंज़िल
क़दम तेरे थाम लूँगी
चुपके से तेरा नाम लूँगी

रविवार, 13 मार्च 2011

एक दिन और डूबा है.....



एक दिन और डूबा है
एक सूरज फिर निकलेगा
कहीं शाम कोई ढाल जाएगी
कहीं रात कोई साज जाएगी
तकती आँखों की उम्मीदों का
कोइ दिया रोशन कर आएगा
देख कातिब बार वक़्त कोई
करम किसी पेर कर जाएगा
एक मासूम की आहों से
ये आलम दहल ना जाए
कहीं कोई सिसकी चुपके से
तेरे दर्र से ना आ टकराए
काँप उठेगा ज़ररा ज़ररा ये
जुब तक़दूस पे कोइ आँच आए
उस वक़्त से दर आए ज़ालिम वक़्त
जुब खुदा की तुझ से तन जाए
बहतेर है रोक ले खुद को तूऊ
शाएेद बात किसी की बन जाए
छोड़ दे अपनी ये ख़याली सरदारी
कोइ तक़दीर से ना लड़ पाए
जिस का जितना मोक़दार है
उतना ही उसके हाथ आए