वो कल आज भी गूंजा करता है
वो कल आज भी ख्वाब सा लगता है
वो कल आज भी दिल की षादबी है
वो कल आज भी दिल की बाज़याबी है
आ कोई दिल सुना करता था
कोई साथ आहें भरता था
कोई पहलू महकाया करता था
कोई आँखों मे रंग भरता था
सब तब की ये बातें तीन
जुब दिन अपना था अपनी रातें तीन
चाहे छूँड ही मुलाक़ातें तीन
तमाम उम्र की सौघातें तीन
जिस पेर पतझड़ का साया था
एक नया मोसां उस पेर आया था
एक बुउन्ड माँगते का सरमाया था
वही बुउन्ड लूटा कर आया था
क्यों अपनी उम्मीद पे रोया करता है
क्यों खुद को इन मे बोया करता है
क्यों अपनी खामोशी गोया करता है
क्यों बेकार दामन भिगोया करता है
फ़ाक़ात एक डॉवा है तेरे ज़ख़्मों की
बस है एक ही मरहम बेचैनी का
अपने हवासों को फिर कल से मिला
वहीं मौजूद है तेरे घूम का सिला
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