रूपोश होगआय गर मेरे ख़याल ये
कों जान पाएगा है किसका कमाल ये
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वो खाना-बदोश है या सरफ़रोश है
एक इसरार पुराना कूब से खामोश है
लबादा गाड़ा का है शाहों का भेस है
उसकी हेर अदा मे जाँबाज़ों का जोश है
मंज़र निगाहों को घैर का दिखाए वो
वो दोस्ताँ-ए-रहमत का हलक़ा बागोश है
जिसे पनाह ना मिले सबर-ओ-क़रार मे
वहेड ठिकाना उनका एक उसकी अघोष है
कैफ़ उसकी खामोशी, मस्ती है उस से अगाही
माए हैं ख़याल ये,दिल माए-फ़रोश है
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