गुरुवार, 15 जुलाई 2010

फिर एक शब तेरी याद बन कर


फिर एक शब तेरी याद बन कर

सारे लम्हे खारों से चुन कर

एक एक गुल से खुश्बू चुरा कर

कितने खूनीं रंगों मे नहा कर

सारी सरफ़िरी खाहिशों को सुला कर

चुपके से कहती है कानो मे आ कर

मोहब्बत उसे रास आए वफ़ा कर

देख चलता है वो दामन बचा कर

रिया-कार मिलते हैं पेरडा गिरा कर

कितना कहा था ना खुद से मिला कर

ख़ाता-कार के लिए ना तू खाता कर

आ!रोशन हुआ दिल सब कुछ जला कर

आईने,अब ना यों मुझ पेर हंसा कर

रब मिला है उसे दिल मे बसा कर

ज़िंदगी पल की उड़ान है ...


ज़िंदगी हुँने सुना है

सदा रवाँ दवन है

मई कैसे मान लूँ

आख़िर ज़िंदगी कहाँ है

गुज़रे हुए पलों की

भूली सी दास्तान है

ये दौर कौनसा है

ये कौनसा जहाँ है

गुम-नाम साहिलों सा

बे-नाम-ओ-निशान है

कोई छाप कह रही है

इंतिज़ार बाद-गुमान है

बोझल फ़िज़ा का आँचल

कश्ती का बादबान है

शॉरिश-ए-मौज है इशारा

बस आने को तूफान है

बे-खतर हैं पेरवाने

यही रात उनकी आन है

शम्मा की रोशनी मे

उन लूबों की मुस्कान है

है महू-ए-ख्वाब कुबसे

ख़याल-ए-विसाल-ए-जान है

मेहराब महल हैं मिट्टी

ज़िंदगी पल की उड़ान है


एक क़ातिल से दिल लगाने की ..


एक क़ातिल से दिल लगाने की

हम ने ये सज़ा पाई

हमारी मोहब्बत को

कभी मौत ही ना आई

मूह मोड़ कर साहिलों से

डूबने की क़सम खईई

मंज़िल रास्ते सफ़र छूटा

पठारों से होगआइइ शनसाई

हिस एहसास खो बैठे

अब दीवाने हैं ना सौदा

क्या वाक़ई “कल” कोई गुज़रा था

“आज” पेर होश ने उंगली उठई

ये सारे फ़साद दिल के थे

इश्क़ की ही थी कार-फएरमई

गर जुनून शौक़ बन जाए

होजाए मोहब्बत भी रुसवा

बे-खुदी की अपनी शेरतें हैं

इसमे अक़ल की नही सुनवाइ

भले दिल जाता रहे जाए

दोनो जहाँ हारे मारीफत पाई

ये सौदा बुरा नही प्यारे

ये ज़िंदगी किसी काम तो आई

आज फिर होश माँगता है दिल ..


आज फिर होश माँगता है दिल
आज फिर जी उतना चाहता है दिल
क्या खबर रहबार क्यों रुका है सफ़र
फिर उसकी संगतों का असर चाहता है दिल
मैखाना जिसके आगे मदहोश था
वो लम्हा बूँद बूँद फिर चाहता है दिल
चराघ-ए-दिल खुद बखुद जुल उठे
वो माए आतिशी फिर चाहता है दिल
जहाँ गुल बिछे थे उसके क़दमों तले
उस जगह फिर सर झुकना चाहता है दिल
दिलजलों की जेया-ए-पनाह वो सकूँ गाह
आज फिर वहीं जाना चाहता है दिल
ये कौन रोकता है हुमें भला
नही नही,अब आज़ाद होना चाहता है दिल
कल खुशी समझे थे जिसे सराब था
उस फरेब से निकल जाना चाहता है दिल
ज़िंदगी एक नज़र पेर तेरे मुहित थी
फिर वही नज़र पाना चाहता है दिल
मैने सुना है खीज़ार का पयाँ ये
दीवानो,खुदा समझाना चाहता है दिल