सारा जहाँ हमारा
गर तेरे ख़याल से मिल गाइ
जो बिसात बरसों बिछी रही
गर क़िस्मत वो बाज़ी चल गाइ
गर यक़ीन को मुराद हासिल ना हुई
साँझ लो ज़िंदगी से रूह भी गई
मुज़माल मोसां भी खामोश हैं
वक़्त की सुई इसी ख़याल से तुम गाइ
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