बुधवार, 28 अप्रैल 2010

रुत है रहमातों की




रुत है रहमातों की
मोसां है बख़्शिशों का
कोई लम्हा फ़ैज़ का
बस मिल जाने को है
वो सुर्ख रंग मोसां
फिर से आने को है
फिर रंग उसके दिल का
रंग लाने को है
कोई मुसलसल कह रहा है
तू सदा मेरा रहा है
किसी ज़मीन आसमान मे
तेरे यक़ीन,तेरे गुमान मे
एक मूभम ख़याल बन कर
मुझ मे छुपा हुआ है
वही दोस्त का मर्तबा है
वही आज़मात-ए-दुआ है

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

मुझे राह दिखा के तुम


मुझे राह दिखा के तुम

ना छोड़ देना राह मे

तुम्हारी राह ना सही

मेरी राह तुम्ही से है

मई कूब से दरम्यान

खड़ी हूँ इंतिज़ार मे

तुम्हारा साथ ना सही

हेर बात तुम्ही से है

तुम्हारे सफ़र से ही हुई

इस सफ़र-ए-ना-तमाम की िबतिडा

शौक़-ए-मंज़िल ना सही

ये दिल तुम्ही से है

तमाशा जो बने रहे

एहसास जाने कहाँ गये

अपना पत्ता ना सही

ये आटा तुम्ही से है

घूम अब किस का करें

वजह समझे थे जिसे

उसका निशान ना सही

अपना निशान तुम्ही से है