शनिवार, 19 मार्च 2022

एहसास के दरीचे



एहसास के दरीचे 

बाँध क्यों पड़े हैं

सहें-ए-आरज़ू भी 

क्यों है सूना सूना

जुब मोक़बाल हसरतें हैं

फिर दिल बेताब क्यों नही है

मोसां की आब-ओ-ताब हैरान

ये किस दिल से मिल गये हैं

जो  कभी बहार खुद था

जो खुद चमन चमन था

जिसका हेर लफ्ज़ लालावी था

जो था इश्क़ बा मुजासाम

जिस का ख़याल जुनून-ए-मजनूं

थी जिसकी कॅज़म नवीद-ए-महताब

जिस का सुखन थे

बाद-ए-सहेर के नाघमत

उसके आज़म-ओ-अहद को क्या हुआ है

जो रंग शोला-ओ-शबनूमी थे

जो वक़्त से मायूस ना कभी थे

तक़दीर थी जिसकी निशात तबाई 

दिलगिरों के हालक़े मे क्यों खड़ा है

ये लिबास मातमी से

उसके आज पेर क्यों चड़े हैं

वो हसीन कल, दोस्त बन कर

शाएेद कल ही मे खो गया है

वो ख़ुस्लिबास दिल का मोसां

क्यों तार तार होगआया है

आख़िर ये बिजली क्या यहीं गिरी थी

या फिर ये भी एक रहबरी थी

के वक़्त और मोसां 

दिल ना बदल सकेंगे

ये दौर चाहे बदलें

हम ना बदल सकेंगे

मोहब्बत की लॉरी एहसास को सुना कर

यादों को अपनी हसीन माज़ी बना कर

हेर ज़ख़्म रब का तोहफा कहेंगे

कहीं कोई गुल कभी तो खिला था

कहीं कोई नादिया हम से भी आ मिली थी

जिसकी हसरत मे ख़यालों को सँवारा

दो क़दम पेर दिल की वो गली थी

बस इतना सा हम को गीला है

जुब भी मिला वो,घैर बन के मिला है

अंजाम दर्द का बेशक भला है

रब के इश्क़ का ये भी एक सिलसिला है

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