बुधवार, 23 मार्च 2022

रोज़ उसकी खामोशी से अजब गुफ्तगू रही............

 


सजाए कितने ख्वाब इस ख़याल से

ताबिर निकल आए शाएेद नक़ाब से

जैसे तिलिस्मात की कोई उन-सुनी दास्तान 

निकल आए शब भर मे किताब से

नौ-उम्र आरज़ू की इतनी सी थी हयात

जैसे भीगी रूटों के दो पल हूबब से

ज़िंदगी चीन कर कहा यही है ज़िंदगी

तेरी क़िस्मत लिखी गई आँखों के आब से

नोक पालक संवारते संवारते खीर्ड की

राज़ हक़ीक़त के पा लिए तेरे एजतिनाब से

रोज़ उसकी खामोशी से अजब गुफ्तगू रही

परेशन सवाल है उसके अधूरे जवाब से

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