है गर इश्क़ ख़ाता का पहलू
तेरे पहलू की ज़रूरत क्या है
माना के और भी घूम हैं
फिर दर्द-ए-मोहब्बत क्या है
हैं एक ज़ीस्ट के झगड़े कितने
आए दिल एक और मुसीबत क्या है
लूटने वाले ने कहाँ ये देखा
आख़िर इन हालात की सूरत क्या है
तेरे माना के हैं लाखों चेहरे
बता इस चेहरे की मुद्दत क्या है
वक़्त तेरे अंदाज़ बड़े हैं क़ातिल
आख़िर एक शाम की क़ीमत क्या है
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