मंगलवार, 26 मई 2009

आधे अधूरे इंसानों की ये बस्ती है


आधे अधूरे इंसानों की ये बस्ती है
गिरान मोहब्बत,सस्ती बस एक हस्ती है
एक सवाल है बचपन ख्वाब जवानी है
उम्र हसरातों की चक्की मे पीसती है
गर तमघा है फ़क़ीरी सीने से लगा
ठोकराओं मे फिर क्यों उसकी हस्ती है
हिकमत तेरी और ज़द्द पेर दिल कितने
एक इशारे को तेरे खुशी तरसती है
अछा और बुरा दोनो मया-जाए हैं
सबर की ही कमी बुरे मे डिस्ती है
दे कर ज़ेह्न--दिल फ़ाक़ात बदनाम किया
अंजाम--ज़ीस्ट की डोरे क़ुद्रट कास्ती है
मेरी तमन्ना हेर दिल को मिले यक़ीन
कामिल ईमान, आला, अफ़ज़ल ,हक़-परस्ती है
घूम के मारों को मिले मसीहा फिर
इस िनायट के बदले क़यामत सस्ती है
पयाँ मोहब्बत का हो हेर दिल मे
दायर--उलफत मे रहमत तेरी बरसती है
सौ ख्वाबों पेर एक आटा भारी है
तू जहाँ"चाँद"वहीं पे बस्ती है

2 टिप्‍पणियां:

  1. Sehma sehma dara dara sa rehta hai
    Jaaney kyu jee bhara sa rehta hai

    Ishq main aur kuch nahin hota
    aadmi baawra sa rehta hai

    janey kaisi basti hai ye rehana ji...
    koi tanha miley bhi to puchey
    Har shakhs ke sath saaya laga hua hai

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  2. sahi kaha..saaye hi saath hote hain..insanon ke paas waqt kahaan..ab vo pehle se jazbaat kahaan...
    saaye hi tou rakhsakh hain..karmon ke.

    chaand

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