बुधवार, 13 मई 2009

ये शोर कैसा है


ये शोर कैसा है
ये क्या क़यामत है
ये खून कैसा है
जो बे-रंग लगता है
इंसान जुब इंसान को
देने पे आता है
क्या क्या देखिए साहेब
देता जाता है
उलफत के पेरदे मे
नफ़रत का चखू है
हुंदर्द बन कर
मिलता हलाकू है
अब कैसे कोई अपना
ईमान बचाएगा
भैईई बन कर जुब
भैईई को काट खाएगा
ये भूक अजब देखी
ये प्यास लहू माँगे
मुर्दा दिलों से
कोइ और क्या माँगे
सुना था फ़ैसले सारे
मुनसिफ़ ही करता है
अब फ़ैसलों का हक़
संगदिल ही रखता है
माचीनों का ज़माना है
इंसानों के जिंसों मे
जो कल पुर्ज़े हैं
इन्ही कोइ और चलता है
इंसान ये चालें
कहाँ जान पाता है
एक अपने साइवा
सब कुछ भूल जाता है
कभी यों भी होता है
खुद को तक भूल जाता है
आँखों मे सपना है
जहाँ कोइ ना अपना है
तरकश तखयूल है
आसमान निशाना है
जुब सफ़र डोर का तेहरा
फिर घूम क्या है
क्या क्या छोड़ जाना है
आज के इंसान
शिकार सिक्कों के
आज के इंसान
मजबूर दुखों से
बघवत पे ही जुब
बात है तहरी
नफ़स का बाघी
क्यों ना हो डेहरी
ज़रा सोचो आख़िर
मौत को तो आना है
आए हुए को एकदिन
लौट कर भी जाना है
मौत से पहले
सज़ा--मौत से क्या हासिल
ज़ी-रूह हो बनी-नू तुम
क्यों बनते हो तुम क़ातिल
मेरी मानो अगर साथी
तुम दिया बनो
और मई बाटी
उम्र गर गुज़र जाए
फिर वापेस नही आती
तुम अपना सफ़र डेडॉ
और मेरा क़लम लेलो
मई तुम बिन अधूरी हूँ
तुम्हारे लिए ज़रूरी हूँ
आओ मिल कर नया
एक जहाँ बनाएँगे
आओ सब मिलजुल कर
मोहब्बत के गीत गाएँगे
खुदा से किया हुआ वादा
पूरा कर के जाएँगे
इंसानिएट का सबक़ अवाल
अपनी नस्लों को सुनाएँगे

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