शुक्रवार, 22 मई 2009

आए ताज


आए ताज तुझे जिसने भी बनाया होगा
अपने महबूब से नज़र चुराया होगा
मायूस निगाहों में महेबूब की उसको
अक्स ताज का ही नज़र आया होगा
गर मुमताज़ थी मोहब्बत उस की
खुद को ताज पे खड़ा पाया होगा
शाहों ने यह कैसी मोहब्बत की थी
आहों से सुंग भी गरमाया होगा
थी अदा--मोहब्बत के घुरूर--शहान
इश्क़ भी खुद से गब्राया होगा
हेर दर्द कहेगा आए शाह--जहाँ
ताज ने चाँद का दर्द सजाया होगा

3 टिप्‍पणियां:

  1. आए ताज तुझे जिसने भी बनाया होगा
    अपने महबूब से नज़र चुराया होगा
    मायूस निगाहों में महबूब की उसको
    अक्स ताज का ही नज़र आया होगा
    kya baat hai ! ye to bilkul nai baat hai ji. mazaa aa gayaa.

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  2. ji bas nazar nazar ki baat hai..her ek ki soch ka zaviya mukhtalif hota hai...meri soch ye kehti hai waqi ek shahinsha ne daulat ka sahara lekar hum ghareebon ki mohabbat ka udaya hai mazakh.

    chaand

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