बुधवार, 20 मई 2009

एक काली


तोहफा हूँ हेर अंजुमन के लिए
मैं खिली हूँ नशेमान के लिए

यहाँ
परवा किसे है काँटों की
टायर हून हेर चुबन के लिए

क़तरा
लहू जो बहा भी जाएगा
काफ़ी है क्या दुश्मन के लिए

रोज़
ही मुझ को महकना है
गेसू सगे या साजन के लिए

गुलचीन
से जो बच भी जौन
"चाँद" सौदा हूँ मलन के लिए

1 टिप्पणी:

  1. तोहफा हूँ हर अंजुमन के लिए
    मैं खिली हूँ नशेमन के लिए

    यहाँ परवा किसे है काँटों की,
    तैयार हूँ हर चुभन के लिए .
    प्रूफ़ की गलती के कारण अर्थ बहुत बिगड़ रहा था . दो शेर दुरुस्त किये हैं .बराए मेहरबानी बाकी भी सही कर लें . आप इतना खूबसूरत लिखती हैं , ऐसी गलतियां उसमें दाग़ लगाती हैं. में जानता हूँ यूनिकोड में टाइप करते वक़्त कुछ मुश्किल होती है मगर इतनी मुश्किल भी नहीं के आसान न बनाई जा सके .

    word verification ab bhi maujood hai . badi dikkat hoti hai isse

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