बुधवार, 13 मई 2009

वो छूँड लम्हे

वो छूँड लम्हे

जो माता-ए-हयात थे

आज भी वही

मेरे साथ हैं

कल भी वही

मेरे पास थे

मेरी कानात को

अपना हुस्न बख़्श कर

वो कितने उदास थे

वो जानते थे मेरी

काश-मा-काश का राज़

वही छूँड लम्हे जो

ज़िंदगी की मिठास थे

खैर हो लघज़िशों की

अंधेरोन मे दियों की

हवाओं की,की हिफ़ाज़त

जो रुख़ शनास थे

तरबतर आँसुओं से

दामन सदा रहा है

बारीशों के वो मोसां

उन्ही लम्हों की प्यास थे

उम्र बेखुदी थी

कहीं मई नही थी

वही छूँड लम्हे मेरे

बस होश-ओ-हवास थे

रसम माँगने की

बख़्शिशों की नज़र की

वो लम्हे आटा के

दुआओं से ख़ास थे

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