गुरुवार, 14 मई 2009

पत्रों से कब भला


पत्रों से कब भला लोग दिल लगाते हैं
दिल ही क्या लोग भगवान बदल जाते हैं
है सेहराइी बाशिंदों सा आवारा इंसान का दिल
प्यासे कूब औरों की प्यास बुझा पाते हैं
कितने फिटने पोषीदा हैं इस जादुइ बक्से मे
एक दब्ाओ और कितने फिटने उभर आते हैं
सैलाब को आते देख कश्टियाँ मंझदार मे
माझी छोड़,साहिल की सिम्त दौड़ लगते हैं
नफसा नफसी का अलाम सुना होगा महशर मे
इस दौर के भाई,बहेनॉ से नाता तोड़ जाते हैं
एक ममता के सहारे सौ तूफ़ानों से लड़ना सीखा
कोई क्या जाने बस सौदे सारे रिश्ते नाते हैं
कहीं ये आस के पंछी फिर पेरवाज़ पे अपनी
"चाँदनूं आँखों को ख्वाब दिखा जाते हैं

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