सजाए कितने ख्वाब इस ख़याल से
ताबिर निकल आए शाएेद नक़ाब से
तिलिस्मात की जैसे कोई उनसुनी दास्तान
निकल आए शब भर मे किताब से
नौ-उम्र आरज़ू की इतनी सी थी हयात
भीगी रूटों के जैसे दो पल हूबब से
ज़िंदगी चीन कर कहा यही है ज़िंदगी
तेरी क़िस्मत लिखी गई आँखों के आब से
नोक पालक संवारते संवारते खीर्ड की
राज़ हक़ीक़त के पा लिए तेरे एजतिनाब से
रोज़ उसकी खामोशी से अजब गुफ्तगू रही
परेशन सवाल है उसके अधूरे जवाब से
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