जुब भी मई ने खुदा कू याद किया
जाने दिल ने क्यों तुझ को याद किया
जुब क़ुरान रहा मेरे हाथों मे
तेरी खुश्बू ने मुझ को शाद किया
कोई तलब उठी जुब हक़ की सीने मे
तेरे ज़ाहिर ने बातिं को आबाद किया
तेरे क़ुर्ब के तालिब कितने नादान थे
हेर पल खुद से एक नया जहाड़ किया
एक बुनन्द इश्क़ की तुझ से जिन को मिली
किसी को शिरीन, किसी को फरहाद किया
तू ने कशाफ़ को यों महजूब रखा
कभी खुद को बुलबुल कभी सयाद किया
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