शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

जुब भी मई ने खुदा कू याद किया






जुब भी मई ने खुदा कू याद किया
जाने दिल ने क्यों तुझ को याद किया
जुब क़ुरान रहा मेरे हाथों मे
तेरी खुश्बू ने मुझ को शाद किया
कोई तलब उठी जुब हक़ की सीने मे
तेरे ज़ाहिर ने बातिं को आबाद किया
तेरे क़ुर्ब के तालिब कितने नादान थे
हेर पल खुद से एक नया जहाड़ किया
एक बुनन्द इश्क़ की तुझ से जिन को मिली
किसी को शिरीन,  किसी को फरहाद किया
तू ने कशाफ़  को यों महजूब रखा
कभी खुद को बुलबुल कभी सयाद किया

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें