इन खामोशियों की
अपनी अलग ज़ुबान है
इस चुप की दास्तान मे
सिमटा हुआ जहाँ है
बारहा उसको सुना है
कहता कुछ कहाँ है
अभी कुछ उनसुना है
दिल की आ-ओ-फिघन है
दुनिया से कर्दे घफ़िल
नज़रों का कारवाँ है
सोहबत के दो घूँट पीले
इस आलम का वो कहाँ है
तालिब के दिल सुन रहा है
तलब खुद पाशेमान है
रास आ जाए हुमें भी
खामोशी जो हुक्मरन है
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