शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

विदा


मेरे यक़ीन से उस को इतना प्यार है
मुझसे बिछड़ के भी मेरा इंतिज़ार है
विदा किया जिसने मुझ को कह कर अलविदा
आज मेरे इंतिज़ार मे वही बे-क़रार है
सेलेब पेर ज़रूरतों की लटक रही है ज़िंदगी
सर पेर मुअल्लाक़ शिकाएटों की तलवार है
मिलेगी उम्मीद को कभी मंज़िल यक़ीन रख
सब कुछ है तेरे पास,सबर दरकार है
बीच राह मे कोइ खलिश आज़माए अगर
साँझ लीजियो ये फ़ाक़ात नफ़स की तकरार है
ये इश्क़ का सफ़र आसान नही है तालिबो
हेर लम्हा इम्तिहान ,हेर राह खारदार है

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर प्रस्तुति....

    नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।

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  2. कविता...शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।

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  3. raat aur din ke haseen safar may hi khud ko khojta hai admi..khud ko paata hai admi..khud ko khota hai admi..aap sab ki zindgi ki her ratri shubh rahe yehi kamna hai..khush rahen..

    chaand

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