मई एक खामोश समंदर हूँ
मुझे साहिल की ज़रूरत क्या है
जिस कश्ती को हो मंज़िल का पत्ता
उसे किनारों की ज़रूरत क्या है
टुंडड़ थपेड़ों का सहारा जिनको
उन्हें बादबान की ज़रूरत क्या है
रहा हो हवाओं का करम जिन पेर
उन्हें आज़माने की ज़रूरत क्या है
राहनुमा होजाए भटकती लाउ ही
उन्हें भटकने की ज़रूरत क्या है
भंवर गर्र्दाब जिनका सहारा होंगे
उन्हें किसी और की ज़रूरत क्या है
बिन माँगे मिल जाए जिन्हें मोटी
उन्हें माँगने की ज़रूरत क्या है
मांगतों की झोली देखी सदा खाली
साएल को सवली की ज़रूरत क्या है
राज़ हस्ती पे मुहित है कईनाथ
मुझे साहिल की ज़रूरत क्या है
जिस कश्ती को हो मंज़िल का पत्ता
उसे किनारों की ज़रूरत क्या है
टुंडड़ थपेड़ों का सहारा जिनको
उन्हें बादबान की ज़रूरत क्या है
रहा हो हवाओं का करम जिन पेर
उन्हें आज़माने की ज़रूरत क्या है
राहनुमा होजाए भटकती लाउ ही
उन्हें भटकने की ज़रूरत क्या है
भंवर गर्र्दाब जिनका सहारा होंगे
उन्हें किसी और की ज़रूरत क्या है
बिन माँगे मिल जाए जिन्हें मोटी
उन्हें माँगने की ज़रूरत क्या है
मांगतों की झोली देखी सदा खाली
साएल को सवली की ज़रूरत क्या है
राज़ हस्ती पे मुहित है कईनाथ
आईना दिखाने की ज़रूरत क्या है
रहा हो हवाओं का करम जिन पर
जवाब देंहटाएंउन्हें आज़माने की ज़रूरत क्या है
वाह रेहाना जी क्या बात कही है । पढ़कर दिल खुश हो गया। बहुत दिन बाद ब्लॉग पर आया तो पहली ही रचना पढ़कर अहसास हो गया कि इन दिनों मैंने क्या मिस किया। सुन्दर रचना के लिए बधाई।
shukriya pradeep ji..
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