सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

मई एक खामोश समंदर हूँ


मई एक खामोश समंदर हूँ
मुझे साहिल की ज़रूरत क्या है
जिस कश्ती को हो मंज़िल का पत्ता
उसे किनारों की ज़रूरत क्या है
टुंडड़ थपेड़ों का सहारा जिनको
उन्हें बादबान की ज़रूरत क्या है
रहा हो हवाओं का करम जिन पेर
उन्हें आज़माने की ज़रूरत क्या है
राहनुमा होजाए भटकती लाउ ही
उन्हें भटकने की ज़रूरत क्या है
भंवर गर्र्दाब जिनका सहारा होंगे
उन्हें किसी और की ज़रूरत क्या है
बिन माँगे मिल जाए जिन्हें मोटी
उन्हें माँगने की ज़रूरत क्या है
मांगतों की झोली देखी सदा खाली
साएल को सवली की ज़रूरत क्या है
राज़ हस्ती पे मुहित है कईनाथ
आईना दिखाने की ज़रूरत क्या है

2 टिप्‍पणियां:

  1. रहा हो हवाओं का करम जिन पर
    उन्हें आज़माने की ज़रूरत क्या है

    वाह रेहाना जी क्‍या बात कही है । पढ़कर दि‍ल खुश हो गया। बहुत दि‍न बाद ब्‍लॉग पर आया तो पहली ही रचना पढ़कर अहसास हो गया कि‍ इन दि‍नों मैंने क्‍या मि‍स कि‍या। सुन्‍दर रचना के लि‍ए बधाई।

    जवाब देंहटाएं