फिर एक शब तेरी याद बन कर
सारे लम्हे खारों से चुन कर
एक एक गुल से खुश्बू चुरा कर
कितने खूनीं रंगों मे नहा कर
सारी सरफ़िरी खाहिशों को सुला कर
चुपके से कहती है कानो मे आ कर
मोहब्बत उसे रास आए वफ़ा कर
देख चलता है वो दामन बचा कर
रिया-कार मिलते हैं पेरडा गिरा कर
कितना कहा था ना खुद से मिला कर
ख़ाता-कार के लिए ना तू खाता कर
आ!रोशन हुआ दिल सब कुछ जला कर
आईने,अब ना यों मुझ पेर हंसा कर
रब मिला है उसे दिल मे बसा कर
बढ़िया है..
जवाब देंहटाएंवैसे:रिया-कार मिलते हैं पेरडा गिरा कर ...का क्या अर्थ होता है, कृपया बतायें तो कुछ नया सीखने मिले.
बढ़िया है.
जवाब देंहटाएंये तश्तरी कही मुशतरी से तो नही उड़ी है?अजी क्या बताएँ...अर्थ तो भावनाओं का है..जिस पेर जो गुज़री उसने वो लिखा..पेरडा गिरा कर तो मसीहा भी मिलते हैं सिटमगर भी..रियकार भरुपीए का दूसरा नाम है..यहाँ उलझनों का शिकार एक दिल कह रहा है..बस और कुछ नही..हक़ीक़त केवल भगवान ही जानता है..हम मंसूहू तो कल्पना भी ढंग से नही कर सकते..अर्थ विस्तार से बता दिया है..
जवाब देंहटाएंचाँद
सहसपुरिया धन्यवाद....
जवाब देंहटाएंअछि ग़ज़ल है, मेरे ख्याल से थोडा लफ़्ज़ों को दुरुस्त करने की ज़रूरत है.
जवाब देंहटाएं@ Udan Tashtari
जवाब देंहटाएं"रिया-कार मिलते हैं पेरडा गिरा कर"
मेरे ख्याल से यह कुछ ऐसे है - "रिया-कार मिलते हैं पर्दा गिरा कर"
और रिया-कार दिखावा करने वाले को कहते हैं, जो अपना हर कार्य स्वयं के ह्रदय को संतुष्ट करने के लिए नहीं बल्कि केवल दूसरों को दिखने के लिए करते हैं.
मेरे ख़याल से
जवाब देंहटाएंख़ाता-कार = खता-कार
खाता = खता
यों = यूँ
पेर = पर
होना चाहिए.
शाह नवाज़ जी से सहमत हूँ ...
जवाब देंहटाएंरचना बहुत सुन्दर है ... काबिले तारीफ़ !
जबरदस्त
जवाब देंहटाएंशानदार
जानदार
और धारदार
अरे.. हां.. बधाई
achhi gazal.......... padhkar maza aya
जवाब देंहटाएंbahut bahut badhai
जवाब देंहटाएंशानवाज़ जी..शुक्रिया..के आपने विस्तार से समझा दिया..जी सही है...
जवाब देंहटाएंदोस्तो.बेहद खुशी हुई के आप सबने मुझे पढ़ा,सराहा,शुक्रिया..
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंThanx ji...
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