शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

ख़याल


हक़ीक़त ख़याल की जुब जान लो
ज़हमत ख़याल को ना दिया करो
ख़याल तो फिर ख़याल हैं
कोइ मलाल इनका ना किया करो
ये उमर का इब्तेदाई लिबास हैं
इन्हें उमर-भर ना सिया करो
ये बे-सबाट ज़िंदगी का ख्वाब हैं
हक़ीक़तों की तरहा ना जिया करो

रंग बिखेरने की हो गर आरज़ू
कॅन्वस हाथों मे लिया करो
दर्द का सफ़र उजलाटों मे ना हो
अपने आँसू आराम से पिया करो
संग दिल सह्रईयों का जहाँ ये
तुम इनका मातम ना किया करो
गये दिनों की बातें भी गयीं
उन्हें फिर आवाज़ ना दिया करो
फूलों की सैरगाह हैं ख़याल
तुम इन की खुश्बू ना लिया करो

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूबसूरत रचना ....


    ये उमर का िबतिडाई लिबास हैं...इस पंक्ति का एक शब्द समझ नहीं आ रहा ...कृपया ठीक करें ..

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  2. ye umr ka ibtidaii libaas hain..matlab shuru ka..

    shukriya mujhe padhne ka..sarahna ka...

    chaand

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  3. jub baat dil ki chalegi,dil say niklegi,tou dil ko chuyegi bhi..mujhe khushi hai ke ye safar dilon ka ,ek nakhatam hone waala haseen silsila hai...so dua hai,jaari rahe..

    chaand

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  4. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 12 -10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  5. रंग बिखेरने की हो गर आरज़ू
    कॅन्वस हाथों मे लिया करो
    रंगो को यह कैनवस वाकई खूबसूरत है.
    बेहतरीन रचना

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  6. गये दिनों की बातें भी गयीं
    उन्हें फिर आवाज़ ना दिया करो
    फूलों की सैरगाह हैं ख़याल
    तुम इन की खुश्बू ना लिया करो

    जी बिलकुल समझ गए...अब ये गुस्ताखी न करेंगे. :):):)

    बहुत खूबसूरती से समझाती रचना.

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  7. sangita ji..mujhe ye jaan kar khushi huii ke aapne meri kavita ko is qaabil samjha..mai zarur likhungi..

    chaand

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  8. एक बार यहाँ भी देखें ...

    http://charchamanch.blogspot.com/2010/10/20-304.html

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  9. "हक़ीक़त ख़याल की जुब जान लो
    ज़हमत ख़याल को ना दिया करो
    ख़याल तो फिर ख़याल हैं
    कोइ मलाल इनका ना किया करो"

    ख्याल तो हवा का झौंका भर है उसे हाथों में कैद कर पाना मुमकिन ही नहीं. बेहद खूबसूरत रचना. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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