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सारा जहाँ हमारा
शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010
किरदार
दौलत के ढेर पैर
जो हुए हैं बडे
काश होते इनमे कहीं
लाल किरदार के भी जुडे
नफस की रोज़ है खाना-पूरी
दावे शराफत के हैं बडे
हेर नेक से साड़ों का बैर है
खुद ज़मीर से कभी न लादे
रौशनी ज़र्र-ओ-जाण माय कहाँ
चाँद उल्फत का जब तक न चदे
3 टिप्पणियां:
Udan Tashtari
15 अक्तूबर 2010 को 4:53 pm बजे
थोड़ा टंकण की त्रुटियाँ रह गई हैं, भाव अच्छे हैं.
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अनामिका की सदायें ......
16 अक्तूबर 2010 को 10:37 am बजे
सुंदर भाव.
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Rehana Chaand
17 अक्तूबर 2010 को 10:19 pm बजे
ji shukriya..
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थोड़ा टंकण की त्रुटियाँ रह गई हैं, भाव अच्छे हैं.
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव.
जवाब देंहटाएंji shukriya..
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