गुरुवार, 15 जुलाई 2010

एक क़ातिल से दिल लगाने की ..


एक क़ातिल से दिल लगाने की

हम ने ये सज़ा पाई

हमारी मोहब्बत को

कभी मौत ही ना आई

मूह मोड़ कर साहिलों से

डूबने की क़सम खईई

मंज़िल रास्ते सफ़र छूटा

पठारों से होगआइइ शनसाई

हिस एहसास खो बैठे

अब दीवाने हैं ना सौदा

क्या वाक़ई “कल” कोई गुज़रा था

“आज” पेर होश ने उंगली उठई

ये सारे फ़साद दिल के थे

इश्क़ की ही थी कार-फएरमई

गर जुनून शौक़ बन जाए

होजाए मोहब्बत भी रुसवा

बे-खुदी की अपनी शेरतें हैं

इसमे अक़ल की नही सुनवाइ

भले दिल जाता रहे जाए

दोनो जहाँ हारे मारीफत पाई

ये सौदा बुरा नही प्यारे

ये ज़िंदगी किसी काम तो आई

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