ज़िंदगी हुँने सुना है
सदा रवाँ दवन है
मई कैसे मान लूँ
आख़िर ज़िंदगी कहाँ है
गुज़रे हुए पलों की
भूली सी दास्तान है
ये दौर कौनसा है
ये कौनसा जहाँ है
गुम-नाम साहिलों सा
बे-नाम-ओ-निशान है
कोई छाप कह रही है
इंतिज़ार बाद-गुमान है
बोझल फ़िज़ा का आँचल
कश्ती का बादबान है
शॉरिश-ए-मौज है इशारा
बस आने को तूफान है
बे-खतर हैं पेरवाने
यही रात उनकी आन है
शम्मा की रोशनी मे
उन लूबों की मुस्कान है
है महू-ए-ख्वाब कुबसे
ख़याल-ए-विसाल-ए-जान है
मेहराब महल हैं मिट्टी
ज़िंदगी पल की उड़ान है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें