मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

या सदा थी एक ख़याल की




या सदा थी एक ख़याल की
एक ख़याल की थी िबतिडा
ख़याल ही ख़याल मे
तराश लिया एक दिलरुबा
अब ज़माने से क्या कहूँ
ख़याल को तू कैसे मिला
राज़-ए-हक़ जानता नही कोई
इज़हार उसी से हुआ बरमाला
मई इश्क़ की सूरत हूँ ज़रूर
मई हूँ नियतों का सिला
मेरा अक्स तेरा ख़याल है
तेरा दिल होगा मेरी सदा
क़ासिद हूँ तेरा प्याम हूँ
तेरा लफ्ज़ लफ्ज़ मेरी दुआ
अजीब दास्तान है ये ज़िंदगी
हेर आरज़ू मे खुदा मिला
जुब रूबरू-ए-ख़याल होगआय
फिर कोइ पेरडा ना रहा
आईं क़ुद्रट के रुक्ण का
मेरा सुखन है एक सिलसिला

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