सोमवार, 14 मार्च 2011

गुज़रे दिनों की धूप ने.....



गुज़रे दिनों की धूप ने
ये नये शजार उगाए हैं
फिर ज़िंदगी के इस सफ़र मे
ये नये मोक़ां आए हैं
वक़्त मोसां ना मिटा सके
ऐसे निशान हम लाए हैं
दाघ जिस के तमघा-ए-हयात
वो चाँद हुँने सजाए हैं
जहाँ तलब मोहबत है फ़ाक़ात
हम उन्ही के मा-जाए हैं
एक दिल की जूसतजू का है फल
काई दिल पास पास आए हैं

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें