सोमवार, 14 मार्च 2011

ये मेरी चाहतों को.............



ये मेरी चाहतों को
आज क्या हुआ है
कुछ सोचना भी चाहूं
ज़हन क्यों सूना पड़ा है
वो ख़याल क्या हुआ
जहाँ तू आ बसा था
वो दिल कहाँ गया
जो तुझ से जेया मिला था
दर्द की हेर गली
आज वीरान पड़ी है
ज़िंदगी फिर से कोइ
सवाल लिए खड़ी है
कौन हूँ मई आख़िर
क्या चाहती हूँ ज़िंदगी से
ये कस्माकश कह रही है
ये पहचाहन की एक कड़ी है
कूब ख़तम खेल होगा
कूब कोई सिरा मिलेगा
मई उसको थाम लूँगी
फिर तुझ से आ मिलूंगी
शाएेद वही है मेरी मंज़िल
क़दम तेरे थाम लूँगी
चुपके से तेरा नाम लूँगी

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