रविवार, 13 मार्च 2011

एक दिन और डूबा है.....



एक दिन और डूबा है
एक सूरज फिर निकलेगा
कहीं शाम कोई ढाल जाएगी
कहीं रात कोई साज जाएगी
तकती आँखों की उम्मीदों का
कोइ दिया रोशन कर आएगा
देख कातिब बार वक़्त कोई
करम किसी पेर कर जाएगा
एक मासूम की आहों से
ये आलम दहल ना जाए
कहीं कोई सिसकी चुपके से
तेरे दर्र से ना आ टकराए
काँप उठेगा ज़ररा ज़ररा ये
जुब तक़दूस पे कोइ आँच आए
उस वक़्त से दर आए ज़ालिम वक़्त
जुब खुदा की तुझ से तन जाए
बहतेर है रोक ले खुद को तूऊ
शाएेद बात किसी की बन जाए
छोड़ दे अपनी ये ख़याली सरदारी
कोइ तक़दीर से ना लड़ पाए
जिस का जितना मोक़दार है
उतना ही उसके हाथ आए

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें