बुधवार, 28 अप्रैल 2010

रुत है रहमातों की




रुत है रहमातों की
मोसां है बख़्शिशों का
कोई लम्हा फ़ैज़ का
बस मिल जाने को है
वो सुर्ख रंग मोसां
फिर से आने को है
फिर रंग उसके दिल का
रंग लाने को है
कोई मुसलसल कह रहा है
तू सदा मेरा रहा है
किसी ज़मीन आसमान मे
तेरे यक़ीन,तेरे गुमान मे
एक मूभम ख़याल बन कर
मुझ मे छुपा हुआ है
वही दोस्त का मर्तबा है
वही आज़मात-ए-दुआ है

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