गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

मुझे राह दिखा के तुम


मुझे राह दिखा के तुम

ना छोड़ देना राह मे

तुम्हारी राह ना सही

मेरी राह तुम्ही से है

मई कूब से दरम्यान

खड़ी हूँ इंतिज़ार मे

तुम्हारा साथ ना सही

हेर बात तुम्ही से है

तुम्हारे सफ़र से ही हुई

इस सफ़र-ए-ना-तमाम की िबतिडा

शौक़-ए-मंज़िल ना सही

ये दिल तुम्ही से है

तमाशा जो बने रहे

एहसास जाने कहाँ गये

अपना पत्ता ना सही

ये आटा तुम्ही से है

घूम अब किस का करें

वजह समझे थे जिसे

उसका निशान ना सही

अपना निशान तुम्ही से है

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