मुझे राह दिखा के तुम
ना छोड़ देना राह मे
तुम्हारी राह ना सही
मेरी राह तुम्ही से है
मई कूब से दरम्यान
खड़ी हूँ इंतिज़ार मे
तुम्हारा साथ ना सही
हेर बात तुम्ही से है
तुम्हारे सफ़र से ही हुई
इस सफ़र-ए-ना-तमाम की िबतिडा
शौक़-ए-मंज़िल ना सही
ये दिल तुम्ही से है
तमाशा जो बने रहे
एहसास जाने कहाँ गये
अपना पत्ता ना सही
ये आटा तुम्ही से है
घूम अब किस का करें
वजह समझे थे जिसे
उसका निशान ना सही
अपना निशान तुम्ही से है
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
जवाब देंहटाएंji sanjay ji..bhav jub tak gehre na hon zindgi samjh may aaye kahaan se...shukriya...
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