शनिवार, 30 जनवरी 2010

कहीं किसी शहर मे



कहीं किसी शहर मे

फिर किसी के घर मे

कोइ हसरतों का मारा

आज मार गया होगा

दिलों के भेद सारे

जान लेते हैं सितारे

खुद अपनी ही चाल से

कोइ दर गया होगा

ये दो आँखें देखो

कितने ख्वाब देखती हैं

किसी का इनसे गुज़र कर

वक़्त तहेर गया होगा

कहीं नफ़स ब्राहना है

कहीं आरज़ू सर्घना है

आसान है शिकार होना

शिकार कर गया होगा

उसे मर्घुब चाहतें हैं

बे-बस की शिकाएतें हैं

उसका अब भी वही ठिकाना

वहीं वो फिर गया होगा

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर ,सरल शब्दों के माध्यम से गहन बात कह दी है ..ऐसी उलझन अक्सर सभी को होती होगी.

    जवाब देंहटाएं