गुरुवार, 14 जनवरी 2010

ये भी एक दौर है



ये भी एक दौर है
ये भी गुज़र जाएगा
ये मस्त खरमाण वक़्त
अपनी चाल बदल जाएगा
इस जिस्म का हेर अंसार
क़तरा क़तरा पिघल जाएगा
बे-ख्वाब इन रातों से
हेर ख्वाब निकल जाएगा
ज़िंदगी एक मुसाफिर का क़ूबा
मुसाफिर चोला बदल जाएगा
रंग बदलते चेहरों का
एक और रंग ढाल जाएगा
ज़ख़्म पुराने कहते हैं
नया हेर दर्द बहाल जाएगा
अभी मई एक हक़ीक़त हूँ
मुझ पेर भी ये कल आएगा

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