बुधवार, 14 जून 2023

अब सोचो तो लगता है.....

 


हाँ  बाद मुद्दत के राज़ ये खुला था

किर्छियों मे रिस्ता अपना ही दिल मिला था

हम साया ज़िंदगी का जो क़ुला लग रहा था 

वही अजनबी इस क़ुला का दर्र बन गया था

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अब सोचो तो लगता है

चाहतें बहुत तीन

फिर भी चाहा तुम्हें

लाख नासमझ रहे हम

फिर भी समझा तुम्हें

सवाल खुद ना-समझ है

काश जान पाता हुमें

ज़िंदगी शिकवा किनान है

काश किसी दिन आज़माते हुमें

ये हक़ तुम्हें  हमने  दिया है 

वरना कैसे बुझ पाते हुमें 

ज़िंदगी को उमर भर सुनते रहे

काश बात दिल की सुनाते तुम्हें

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