सोमवार, 2 नवंबर 2009

उम्र कुछ इस तरहा


उम्र कुछ इस तरहा
हुई बसर अपनी
ना थी किसी की खबर
ना रही खबर अपनी
अजब दिल के मोसां थे
अजब थी डगर अपनी
अपनी ज़िंदगी कूब थी
सब की रहिी मगर अपनी
वक़्त के तक़ाज़ों पेर
कहाँ हुई गुज़र अपनी
अजब मोक़ं है आशिक़ी
वहीं होगआइइ बसर अपनी
होते बे-खुदी के क़ाएल
होती खुदी अगर अपनी
जिसके आयेज जुख गया दिल
उसी ने की क़दर अपनी
मैकश और माएकहने
उनमे कहाँ लेहायर अपनी
कहाँ अब हुंसे दीवाने
कहाँ पाई सब ने नज़र अपनी

2 टिप्‍पणियां:

  1. chaand

    Is jahan mein koi sacha sathi nahi
    sabhi fizul ke waadey...juthey wafa ke takaazey...

    kahin nazar na milana..bas chupke se har shakhs ke paas se guzar jana...

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  2. ab hosh kahaan baaqi..nazar may tou bas ek nazara hai..baqi sab ojhal...ummid hi tou dukh deti hai..so acha yehi hai ke usk raza per razi rahen..

    chaand

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